| क्रमांक |
भारत |
अमेरिका |
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भारतीय संविधान 75 प्रतिशत से भी ज्यादा इंग्लैण्ड के संविधान पर आधारित है जहाँ की शासन-व्यवस्था “संसदीय शासन प्रणाली” है.तदनुसार भारत के वास्तविक शासक प्रधानमंत्री व राज्यों के वास्तविक शासक मुख्यमंत्री हैं. |
अमेरिकी संविधान “अध्यक्षीय शासन प्रणाली” पर आधारित है जिसमे देश के वास्तविक शासक राष्ट्रपति व राज्यों के वास्तविक शासक राज्यपाल होते हैं. |
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भारतीय-प्रधानमंत्री देश के किसी एक लोकसभा क्षेत्र या राज्य सभा के सदस्य के रूप में चुन कर आता है और आमतौर पर वह लोकसभा में “तथाकथित बहुमत प्राप्त दल” का नेता होता है. अस्तु भारतीय-प्रधानमंत्री अपने चुनाव-क्षेत्र और लोकसभा में बहुमत प्राप्त नेता हो सकता है किन्तु सम्पूर्ण भारत की जनता के बहुमत प्राप्त तो कदापि नहीं. (मात्र नेहरु, इंदिरा व वाजपेयी इसके अपवाद थे. दूसरे शब्दों में ये तीनो ही ऐसे नेता थे / हैं जो यदि अमेरिकी राष्ट्रपति की तरह चुनाव लड़ते तो भी सम्पूर्ण भारत का बहुमत हासिल कर सकते थे.) चूँकि प्रधानमंत्री देश का वास्तविक शासक होता है अतः उसे आम भारतीय जनता का ही बहुमत प्राप्त नेता ही होना चाहिए. |
जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति सम्पूर्ण अमेरिकी जनता के बहुमतसे चुना जाता है.चूँकि वह सम्पूर्ण अमेरिकी जनता का ही बहुमत प्राप्त होता है अतः वह देश का सर्वाधिक लोकप्रिय “व्यक्ति व नेता” भी होता है. यही कारण है कि अधिकांश अमेरिकी राष्ट्रपति दुबारा भी राष्ट्रपति का चुनाव जीतते हैं और अपने दोनों कार्यकाल पूरा करते हैं.(अमेरिकी राष्ट्रपति का कार्यकाल चार वर्षों का होता है और इस पद पर कोई दो कार्यकाल याने 8 वर्ष से अधिक नहीं रह सकता.) |
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भारतीय राज्यों के मुख्यमंत्री भी किसी एक विधान- सभा क्षेत्रसे चुनकर आते हैं. और विधानसभा में “तथाकथित बहुमत प्राप्त दल” के नेता होते हैं.अस्तु वे अपने चुनाव-क्षेत्र व सदन के बहुमत प्राप्त नेता हो सकते हैं किन्तु अपने सम्पूर्ण राज्य की जनता के बहुमत प्राप्त तो कदापि नहीं क्योकि उस राज्य की जनता ने तो अपने बहुमत से उसे चुना ही नहींहै.झारखण्ड राज्य अपने जन्म के 9 वर्षों में ही 8 मुख्यमंत्रियों की अदली-बदली देख चुका है. मात्र इसलिए कि वहां के मुख्यमंत्री झारखण्ड की आमजनता के बहुमत प्राप्त नेतानहींहैं.अमेरिका केकिसी राज्य में 9साल में 8बार गवर्नर की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता. सुना है कि “गिनीज़ बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड” में झारखंड में 9 साल में 8 बार मुख्यमंत्रियों की अदली-बदली
होने वाली बात दर्ज होने वाली है. |
अमेरिकी प्रान्तों के राज्यपालों की अपने राज्य में बिलकुल वही स्थिति होती है जो देश (अमेरिका)
में राष्ट्रपति की होती है. चूँकि वे अपने सम्पूर्ण राज्य की जनता के बहुमत से चुने जाते है अतः वे अपने राज्य के भी सर्वाधिक लोकप्रिय “व्यक्ति व नेता” भी होते हैं. |
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भारतीय प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सदन में अपने दल या समर्थकों के बहुमत बनाये रखने की सदैव चिंता बनी रहती है ताकि उनकी सरकार बनी रहे. इस कोशिश में अधिकांश प्रधानमंत्रियों व मुख्यमंत्रियों को जब -तब अपनी “सरकार के शक्ति-परीक्षण” की अक्सर अग्निपरीक्षI भी देनी पड़ती रहती है जिसमें अधिकांश सरकार जलकर भस्महोजातेहैंजिसके ज़्यादातर दुष्परिणाम होते हैं देश या राज्य में अनावश्यक खर्चीले मध्यावधि चुनाव. |
चूँकि अमेरिकी राष्ट्रपति व अमेरिकी राज्यों के राज्यपाल प्रत्यक्ष जनता के ही बहुमत प्राप्त नेता होते हैं अतः वे सदन में अपने दलों के बहुमत बनाये रखने की चिंता से भी सदैव मुक्त होते हैं.यही कारण है कि आज तक अमेरिका में सरकारें गिरने पर कोई मध्यावधि-चुनाव नहीं हुए.सिवाय केलिफोर्निया प्रान्त में एक बार के. लेकिन वह मध्यावधि-चुनाव केलिफोर्निया में सरकार गिरने पर नहीं हुआ था.
अमेरिकी संविधान में राष्ट्रपति व राज्यपाल को”इम्पीचमेंट” (महाभियोग) द्वारा पदच्युत करने और “रीकाल इलेक्शन” याने संतोष जनक कार्य न करने पर जनता के द्वारा उन्हें उनके पद से वापस बुलाने के अधिकार की व्यवस्था है. अमेरिकी जनता ने समय-समय पर अपने इन अधिकारों का प्रयोग कियाभी है.कुछ वर्ष पूर्व केलिफोर्निया के पूर्व राज्यपाल “गवर्नर ग्रे डेविस” के कार्य से असंतुष्ट होकर केलिफोर्निया की जनता ने उन्हें गवर्नर पद से वापस बुला लिया था. इसके लिए मतदाताओं कोएक निश्चित संख्या में हस्ताक्षर करके सुप्रीम-कोर्ट में देना होता हैजो केलिफोर्निया की जनता ने दियेथे. उस मध्यावधि-चुनाव में गवर्नर डेविस ने भी चुनाव लड़ा थाकिन्तु वर्तमान गवर्नर श्वार्जनेगर विजयी हुए थे और ज़ाहिर है डेविस हार गए थे. |
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स्वतन्त्र-भारत के 64 सालों में 16 प्रधानमंत्री हो चुके हैं जिनमें से आधे दर्जन प्रधानमंत्रियों(नेहरू, इंदिरा, राजीव, राव, वाजपेयी व डॉ. सिंह को छोड़कर) कोई भी प्रधानमंत्री अपना एक कार्यकाल (पांचवर्ष)पूरा नहीं कर सका.शेष दस प्रधानमंत्रियों की सरकारें विभिन्न कारणों से कुछ दिनों, कुछ महीनो,या कुछ सालों में ही गिर गईं.सबसे “दीर्घकालीन-अल्पकालीन” प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई थे जिनकी सरकार सवा दो साल बड़ी मुश्किल से चल पाई थी. तो इन दसों सरकारों के गिरने पर या तो देश में अनावश्यक-खर्चीले मध्यावधि-चुनाव हुए या फिर से “अल्प कालीन, मिली-जुली, खिचड़ी और कमज़ोर भारत-सरकार” बनी. असमय, अनावश्यक, मध्यावधि चुनावों में अब तक जितने धन बर्बाद हुए हैं उस धनराशि से देश में अब तक इतनी फैक्ट्रियां और उद्योग धंधे खुल सकते थे कि भारत के अधिकांश बेरोजगारों को वहां काम मिल गया होता. |
स्वतन्त्र अमेरिका के 235 वर्षों के इतिहास में
(कभी अमेरिका भी इंग्लैण्ड का गुलाम था और 4 जुलाई 1776 को उससे स्वतन्त्र हुआ था)यहांपर वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा को मिलाकर 44 राष्ट्रपति हो चुके हैं जिनमे से एक की भी सरकार नहीं गिरी है न ही देश में मध्यावधि-चुनाव हुए.दो पूर्व राष्ट्रपतियों (एंड्रू और क्लिंटन) को इम्पीचमेंट (महाभियोग) के द्वारा पदच्युत करने के प्रयास अवश्य हुए पर कुछ-कुछ मतों की कमी से दोनों हीबच गए और दोनों ही ने अपने-अपने दोनों
कार्यकाल पूरे किये थे. (ज़ाहिर सी बात है जिसे करोड़ोंअमेरिकियोंने अपनेबहुमत से अपना राष्ट्रपति चुना हो उसे कुछ सौ अमेरिकी सांसद निकाल भी कैसे सकते थे.) 44 राष्ट्रपतियों में से केवल एक को (निक्सन को वाटरगेट कांड में बदनाम होने की वजह से 1974 में )अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था किन्तु उनकी सरकार फिर भी नहीं गिरी. उप-राष्ट्रपति फोर्ड ने राष्ट्रपति बनकर उनकी सरकार ज्यों कीत्यों सम्हाल ली थी. तबतक निक्सन अपना डेढ़ कार्यकाल (छः वर्ष)पूरा कर चुके थे. |
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भारत में आमचुनाव के दौरान भावी संभावित दो प्रधानमंत्रियों व दो मुख्यमंत्रियों के बीच प्रत्यक्ष जनता के सामने कोई “वाद-विवाद (डीबेट) या प्रश्नोत्तर प्रतियोगिता” आयोजित नहीं किये जाते..जैसे श्री लालकृष्ण आडवानी व डॉ. मनमोहन सिंह के बीच यदि प्रत्यक्ष जनता के सामने यह “डीबेट व प्रश्नोत्तर” हुए होते कि यदि वे प्रधानमंत्री बने तो देश को किस तरह से उन्नति के मार्ग पर ले जायेंगे. देश की अमुक समस्या जैसे बेरोज़गारी का वे किस तरह से समाधान करेंगे. तब आडवानी और डॉ. सिंह दोनों की “देश के समस्या-समाधान की योग्यता” भी जनता के सामने उभर कर सामने आजाती. इस “डीबेट व प्रश्नोत्तर” को सारा देश भी टी.व्ह़ी. पर देख सके – भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. भारत में कडुआ सच तो यह है कि यदि महाराष्ट्र के विधान-सभा में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिल भी गया है तो 30 -35 दिनों तक यह तय नहीं हो पाता कि वहां मुख्यमंत्री बनेगा कौन.चुनाव परिणाम आ जाने के बावजूद भी यहाँ सांसदों-विधायकों के खरीद-फरोख्त, मlन-मनौव्वल, दलबदलू आदि का धंधा चलते रहता है. इन सबके बावजूद भी सरकारें एक कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पातीं. जबकि “अध्यक्षीय शासन प्रणाली” वाले देशों में किसी पद के दो प्रतिद्वंदी-प्रत्याशी ही प्रत्यक्ष एक-दूसरे के विरुद्ध ही चुनाव लड़ते हैं. और चुनाव -परिणाम आते ही उनमे से एक (बहुमत प्राप्त प्रत्याशी) के पद पाने की घोषणा हो जाती है. |
अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान दोनों प्रत्याशियों के बीच देश भर में कमसे कम तीन “वाद-विवाद औरप्रत्यक्षजनता से प्रश्नोत्तर कार्यक्रम” आयोजित किये जाते हैं.सामने बैठी हुई जनता के बीच माइक्रोफोन घूम रहा होता है और वे दोनों प्रत्याशियों से देश की समस्या-समाधान के सम्बन्ध में प्रश्न पूछते रहते हैं. यह “डीबेट और प्रश्नोत्तरकार्यक्रम” सारा अमेरिका
भीटी.व्ह़ी.पर देखता है. (मैंने स्वयं कई देखे हैं.उस दौरान एक मिनट के लिए भी टी.व्ह़ी.छोड़ने की इच्छा नहीं होती) इस “डीबेट और प्रश्नोत्तर” का देश में बड़ा ही गहरा असर होता है.जिस प्रत्याशी का पलड़ा इन डीबेटों में भारी होता है याने जो यह “वाद-विवाद और प्रश्नोत्तर प्रतियोगिता” जीतता है उसके राष्ट्रपति-चुनाव में भी जीतने की सम्भावना लगभग तय हो जाती है. पिछले राष्ट्रपति-चुनाव के दौरान बराक ओबामा ने अपने प्रतिद्वंदी जान मैक्केन को तीनो ही “डीबेटों और प्रश्नोत्तर” में हराया.ओबामा ने देश की समस्या-समाधानों के बड़े ही सटीक,सुन्दर और अकाट्य उत्तर दिए उनकी वाक-पटुता के सामने मैक्केन की बोलतियां बंद हो गईं.और बराक ओबामा काले होने पर भी अपने गोरे प्रतिद्वंद्वी और इस गोरे-गोरी बहुल देश में भी
देश के सर्वोच्च पद (कदाचित दुनियां के सर्वोच्च पद)
अमेरिकी
राष्ट्रपति का चुनाव जीत गए. वे अमेरिका के प्रथम काले रंग के राष्ट्रपति है.ठीक ऐसे ही “डीबेट व प्रश्नोत्तर” राज्यपालों के चुनाव में भी राज्यों में आयोजित किये जाते हैं. इन डीबेटों व प्रश्नोत्तर के माध्यम से प्रत्याशियों की प्रतिभा और पद के लिए योग्यता भी उभर कर जनता के सामने आ जाती है.वैसे इन डीबेटों-प्रश्नोत्तर प्रतियोगिता केकोई”हारजीत”परिणाम घोषित नहीं किये जाते.उन्हें देख-सुनकर स्वतः ही जनता को आभास हो जाता है कि किस प्रत्याशी का पलड़ा भारी था.अमेरिका में सारे देश में चुनाव-प्रचार का पलड़ा एक तरफ तो “डीबेट-प्रश्नोत्तर” का पलड़ा दूसरी तरफ (जो “चुनाव-प्रचार” से कहीं भारी ही) होता
है. |
We are suffering from self interest and self ego, no one wants to learn lesson from past in his individual self interest. otherwise, the only solution to face the present challenges before the nation is direct election.
महाभारत कालीन विद्वान, महान राजनीतिज्ञ महात्मा विदुर ने कहा था – “जो देश अपने विगत इतिहास से कुछ नहीं सीखते वे उसे दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं.”
और हम अपने 64 वर्षों के स्वातंत्र्योत्तर भारत का “विगत इतिहास” लगातार दोहराए-तिहाराए जा रहे हैं. और इसका सबसे मुख्य कारण है – हमने “संसदीय शासन प्रणाली” अपना रखा है. और इस प्रणाली का सबसे बड़ा दोष है – हम अपने देश व राज्य के वास्तविक शासक चुनने के लिए – “अंध-मतदान” करने के लिए बाध्य होते हैं. दूसरे शब्दों में आम भारतीय मतदाता को अपने देश व राज्य के “वास्तविक शासक” (जिन्हें फिलहाल प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री कहते हैं) चुनने का अधिकार ही नहीं होता. जबकि अमेरिका में प्रत्येक नागरिक का यह जन्मसिद्ध अधिकार है. और यह न्यायोचित अधिकार प्रत्येक भारतीय मतदाता को भी मिलना ही चाहिए.और सही अर्थों में यही सच्चा लोकतंत्र है.