https://youtu.be/qDKnKyCQCg4?t=279
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From: Sanjeev Kulkarni < >
A poem by Tathuram Godes
Excellent video song! Let the Hindus organize processions periodically and occasionally all over the nation carrying arms, and marching on streets singing this song. This shakti-pradarshan should cool down the asura.
https://youtu.be/G105L8GKVQ0?t=61
From: Ashok Arya < >
ओउम्
आर्य समाज के बलिदानी वीर नन्द लाल
डॉ. अशोक आर्य
स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने बलिदान के साथ ही आर्य समाज के बलिदानियों की जो एक माला पिरोनी आरम्भ की, उस माला में अपना बलिदान देकर नंदलाल जी ने एक मोती( एक सर) और पिरो दिया| आओ नंदलाल जी के उपलब्ध जीवन का कुछ अवलोकन करें|:-
लाहौर, वर्तमान पाकिस्तान, में लाला निहाल चन्द जी अपनी पत्नी भगवानˎ देवी जी के साथ रहते थे| इनके तीन पुत्र और एक पुत्री थी| इन्हीं के यहाँ ३ नवम्बर १९०८ को जिस बालक ने जन्म लिया, उसका नाम नंदलाल रखा गया| परिवार सामान्य से निम्न अर्थात् गरीब था| साधानों की कमीं होते हुए भी नन्दलाल जी ने लाहौर के डी.ए.वी. स्कूल में नवम कक्षा तक शिक्षा पाने के बाद पढ़ाई को यहीं छोड़ दिया| लाहौर में रहते हों और आर्य समाज का प्रभाव न हुआ हो, यह तो कभी कोई सोच भी नहीं सकता| जब आपका बिच्छोवाली लाहौर कि आर्य्समाज्के कार्यकर्ता लाला गणेशी लाल जी से संपर्क हुआ तो आर्य समाज के संस्कार अपने आप ही आप के अन्दर आ गए| बस फिर क्या था ज्यों ज्यों गणेशी लाल जी का सहयोग आपके साथ बढ़ता गया त्यों त्यो आर्य समाज के प्रति आपकी आस्था भी बढ़ती ही चली गई| इस प्रकार कुछ ही समय में आप एक दृढव्रती आर्य समाजी बन गए| लाला गणेशी लाल जी का सहयोग आपको अपने व्यवसाय में भी मिला और इनके मार्ग दर्शन मे ही आपने बजाजी अर्थात् कपडे के व्यवसाय का प्रशिक्षण मिला| जब बजाजी के कार्य में आप पूर्ण अनुभवी हो गए तो आप फेरी पर गाँव में जा कर कपड़ा बेचने लगे|
लाला गणेशी लाल जी आर्य समाज बछोवाली लाहोर के नियमित सदस्य थे, इस कारण नन्द लाल जी भी इस समाज से ही सम्बंधित हो गए| अब आर्य समाज के प्रति आपकी निष्ठा इस सीमा तक पहुँच चुकी थी कि आप प्रतिदिन दो घंटे आर्य समाज की सेवा और प्रचार में लगाने लगे थे| यहाँ तक की जब भी कभी समाज का कोई कार्यक्रम होता तो और जब कभी समाज का उत्सव आता तो आप इन दिनों घर का कोई कार्य नहीं करते थे और जितने दिन उत्सव होता आप केवल आर्य समाज की सेवा में ही लगे रहते थे| यह उत्सव प्राय: आठ दिन के लिए हुआ करते थे और इन आठ दिन तक आप कभी न अपनी कपडे की फेरी पर ही जाते और न ही अपने घर का ही कोई अन्य काम करते थे, पूरी तरह से आर्य समाज के लिए ही समर्पित रहते थे|
धर्मचर्चा आपके लिए आर्य समाज के प्रचार का एक मुख्य भाग था और आप धर्म चर्चा के कार्य में अत्यधिक चतुर हो गए थे क्योंकि आप को प्रतिक्षण लाला गणेशी लाल जी का मार्गदर्शन मिलता रहता था और लाला गणेशीलाल जी कुरआन के पाठ की पूरी जानकारी रखते थे| इस कारण उनके सहयोग से आपमें भी यही लगन लग गई| आपने भी कुरआन का पाठ पूरी लगन से किया| केवल पाठ ही नहीं किया अपितु कुरान का बहुत सा पाठ( बहुत बड़ा भाग) तो आपने कंठस्थ भी कर लिया| जब भी कभी कोई अवसर उपलब्ध होता तो आप कुरान के स्मरण भाग तथा पाठ का सदुपयोग कर लिया करते थे|
तर्क प्रधान तो आप बन ही गये थे, इसका आर्य समाज के प्रचार में अत्यधिक लाभ मिल रहा था| एक दिन की बात है कि हलाल और मुरदार पर चर्चा चल रही थी| आप ने इस चर्चा में अपना पक्ष रखा की हलाल भी एक प्रकार से मुरदार ही होता है| इतना ही नहीं स्वयं प्रभु व्यवस्था से जिस जानवर की मृत्यु हो जावे, इसे ही आप मुर्दार कहते हो किन्तु उसको खाने की अपेक्षा स्वयं किसी जानवर को मार कर खाने में कहीं अधिक पाप होता है अर्थात् मांस भक्षण उत्तम नहीं है किन्तु स्वयं जीव की ह्त्या करके उसका मांस भक्षण करना तो अत्यधिक पाप है|
परमपिता परमात्मा, जिसे मुसलमान लोग खुदा कहते हैं, के शरीरी अथवा अशरीरी होने पर चर्चा चल पड़ी| भाव यह कि परमात्मा शरीरधारी है या अशरीरी अर्थात् निराकार है, इस विषय पर चर्चा चल पड़ी| आपने कुरआन के प्रमाण से यह सिद्ध कर दिया कि पिंडली आदि अंग होने के कारण खुदा शरीरी सिद्ध होता है| मुसलमान चाहे खुदा को निराकार मानते हैं किन्तु वह लाला नन्द लाल जी के इस तर्क पूर्ण कुरआन के ही प्रमाण की बात सुनकर बगलें झांकने लगे| चाहे मुसलमानों के पास इस तर्क पूर्ण सत्य पक्ष का कोई उत्तर नहीं था किन्तु अपनी मतान्धता के कारण वह नन्द लाल जी के इस तर्क से उनके शत्रु अवश्य बन गए|
नंदलाल जी के इस तर्क से निरुत्तर हुये मुसलामान नन्द लाल जी को मारने की योजना बनाने लगे| मुसलमान मौलवियों ने तो धर्म का नाम लेकर मुसलमानों को सदा ही उत्तेजित किया है और आज भी कर रहे हैं| इस प्रकार मुसलामान मौलविओं ने मुसलमानों को नन्द लाल जी के विरोध में भड़का कर फिर उन से धन एकत्र किया और इस धन की सहायता से कुछ मुसलमानों को नंदलाल जी की हत्या करने का कार्य सौंप दिया|
नन्द लाल जी ने अपनी आजीविका चलाने के लिये निरंतर तीन वर्ष तक फेरी के द्वारा गाँवों में कपड़ा बेचने का कार्य किया| जहाँ वह कपड़ा बेचने के लिए बैठते, वहीँ पर ही कपड़ा बेचने के साथ ही साथ वेद धर्म और आर्य समाज का कार्य भी करते रहते थे| अनेक अवसर तो इस प्रकार के भी आ जाते कि कपड़ा बेचते समय जो धर्म चर्चा आरम्भ होती उसमे आपको कपड़ा बेचने का भी ध्यान नहीं रहता और सारा समय धर्म चर्चा में ही निकाल देते थे| आपके इस धर्मं चर्चा से प्रभावित होकर एक मुसलमान देवी आर्य समाज में आकर शुद्ध हुई| आपने उसे शुद्ध कर उसका विवाह भी किसी आर्य समाज के कार्यकर्ता के साथ करवा दिया| उस क्षेत्र में बहुत से सांसी रहते थे, जो मुसलामान हो चुके थे| आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के आदेश से आपने लाला गणेशीला जी के साथ मिलकर इन्हें शुद्ध करने का कार्य किया| मुसलमानों ने इन्हीं दिनों बाजीगरों को मुसलमान बनाने की योजना बनाई| इस योजना की भनक लगते ही आप बाजीगरों में घुस कर कार्य करने लगे| उन्हें वेद की शिक्षाओं और आर्य धर्म के समबंध में ज्ञान देने लगे| इतना ही नहीं उनके बच्चो को स्वयं उनके घरों में जाकर पढाने लगे| इस प्रकार नन्द लाल जी के प्रयास से बाजीगर जाति के लोग मुसलमान बनने से बच गए|
लाला गणेशीलाल जी नियम पूर्वक गांवों में फेरी का कार्य करते हुये कपडा बेचा करते थे किन्तु उनका एक नियम था कि वह गाँवों में यह कार्य सायंकाल ठीक तीन बजे बंद कर देते थे ओर फिर वह लाहौर लौट आते थे| जैसा उनका अपना नियम था, वैसा ही नियम उन्होंने नन्द लाल जी का भी बना दिया था| अत: नंदलाल जी भी तीन बजे अपना काम समेट कर लाहौर आ जाते थे| इस प्रकार ठीक समय पर यह दोनों आर्य वीर घर पर लौट आया करते थे|
एक बार की बात है कि जब वह कपड़ा बेचने के लिये एक गाँव में फेरी पर गए हुए थे तो पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार गाँव वालों ने उन्हें लम्बी बातचीत में उलझाकर और फिर कपड़ा खरीद कर उन्हें कपडे के दाम देने में अत्यधिक समय लगा दिया| इस कारण उनका उस दिन संयु प्र कार्य समाओप्त नहीं हो सका| इस कारण नन्द लाला जी सूर्यास्त होने तक इसी गाँव में ही अटक कर रह गए| अत: सूर्यास्त होने के पश्चात जब वह गाँव से लाहौर के लिए रवाना हुए| लौटते हुए मार्ग में वह जब सग्गीयान्नामका गाँव कपास से निकल रहे थे, तब अकस्मात् किसी ने उन पर आक्रमण कर दिया| इस अचानक आक्रमण से नांद लाल जी का जीवन समाओप्त हो गया और वह धर्म पर बलिदान हो गए| उनके बलिदान कि यह घटनां दिनांक १२ नवम्बर १९२७ की है|और फिर उनका भुगातान्कराने में इतनी देर लगा डी कि अन्धेरा होनेलगा \पैसे का भुगतान करने में जानबूझ कर इतनी देर लगा दी कि अन्धेरा हो गया
नंदलाल जी सदा नियत समय पर घर लौट आया करते थे किन्तु आज देर रात होने पर भी जब वह नहीं लौटे तो वह्न्हीं लौटे तोनंद लाल जी कि माता जी चिंतित हो उठीं| किसी प्रकार उठाते ,बैठते, जागते माता जी ने रात बिताई और ओतात: काल उसने यह सब कथा लाला गणेशी लाल जी को बताई| सुचानामिलाते ही आर्य समाजके बहुत से कार्यकरता लाला नन्द लाल जी को ढूँढ़ने निकल पड़े| नन्द लाल जी घर नहीं लौटे तो उनकी माता जी को चिंता होने लगी|नन्द लाल जी नहीं लौटे तो उन्किमाता जी को चिंता हिओने लगी किस ओप्रकार रात कास्ताने के पश्चास्त प्रात: काल उन्होंने गनेशी लाल जी को सब में लग गए घटना के तीन दिन बाद अर्थात् १५ नवम्बर १९२७ को नंदलाल जी का शव रावी नदी
के किनारे के किनारे पर पडा मिला किनारे पर नंदलाल जी का शव मिला के किनारे पदाहुआ मिला| के किनारे पडा मिला इस समय देखने से पता चला कि नंदलाल जी के पार्थिव शरीर के दायें हाथ के पीछे की और कि और वाली पीठपर लाठियां मारने कानिशान बना हुआ था| लास्थियान्मारानेक्ले पश्चात उनका घाला घोंट कर उन्हें आरा गया था| की और लाथिओयों के निशान थे और गला दबाकर हत्याकी गई थी यह क्षेत्र भूजंग थाना के क्षेत्र में आने के कारण भुजंग थाना की पुलिस क पास गया और पुलिस ने लाश को डाक्टरी जांच के लिए अस्पताल भेज दिया अस्पताल पहुंचा दिया| अस्पताल भेज दिया लाश का निरिक्षण हुआ और इसके पश्चात् १६ नवम्बर १९२७ ईस्वी को इस शव का अन्तिम्संस्कार किया गया अलिदानीनंद लाल नामक आर्यवीर की अर्थी उठाई गई| का अंतिम संस्कार आर्य समाज बच्छोवाली लाहौर के सभासदों ने बलिदानी नन्द्लाल जी का अंतिम संस्कार बड़ी धूमधाम्के सथ पूर्ण वैदिक रिओत्यानुसार किया| संस्कार पूर्ण वैदक रीत्यानुसार बड़ी द्ऊमधाम से किया
बलिदानीनंद लाल जी ने अपने जीवन का बहुत बड़ा भाग आर्य समाज कि सेवा में बिताया | आर्य समाज के प्रति उनकी सेवा के साठुनाकी अत्यधिक अलगन जुड़ी हुई थी| आर्य समाज को आगे बढाने के लिए युवकों की आवश्यकता सदा ही रहती है और युवकों के संगठन को खडा करने में नन्द ला जी को अत्यधिक रूचि थी| नन्दला जी सदा सत्य वचनों पर ही विशवास करते थे और सत्य वक्ता थे| सत्य के लिए बड़े से बड़े संकट का सामना करने को भी सदा तैयार रहते थे| आर्य समाज के क्षेत्रों में लाला गनेशीलाला जी को वहापने पिताके सामान ही मानते थे| नन्द लाल जी ने बदीमज्बूती से खडा किया इस प्रकार आर्य समाज की सेवा करने वाला यह युवक नन्द लाल मात्र १९ वर्ष कि आयु में ही विधर्मी मुसलमानों के क्रोध का शिकार हो गया| मात्र उन्नीस वर्ष की आयु में ही धर्म की वेदी पर बलिदान हो गया
डॉ. अशोक आर्य
The Real Hindu “Tiger” Whom even his enemies praised
Aurangzeb
*”From Kabul to Kandahar my Taimur family created the Mogul Sultanate. Iraq, Iran, Turkistan and in many more countries my army defeated ferocious warriors. But in India, Shivaji put brakes on us. I spent my maximum energy on Shivaji but could not bring him to his knees.*
*Ya Allah, you gave me an enemy, fearless and upright, please keep your doors to heaven open for him because the world’s best and large hearted warrior, is coming to you.”*
-Aurangzeb (After Shivaji’s death, while reading Namaz)
*”That day Shivaji just didn’t chop of my fingers but also chopped off my pride. I fear to meet him even in my dreams.”*
–Shahista Khan.
*”Is there no man left to defeat Shivaji in my kingdom??”*
– Frustrated Begum Ali Adilshah.
*”Neta Subash Chander Bose ji, your country does not require any Hitler to throw out the British.
-Adolf Hitler
*”Had Shivaji been born in England, we would not only have ruled earth but the whole Universe.”*
-Lord Mountbatten
*”Had Shivaji lived for another ten years, the British would not have seen the face of India.”*
— A British Governor
*_If India needs to be made Independent then there is only one way out, ‘Fight like Shivaji’.”*
–Netaji Subash Chander Bose
*”Shivaji is just not a name, it is an energy source for Indian youth, which can be used to make India free.”*
– Swami Vivekananda.
*”Had Shivaji been born in America, we would have declared him as SUN.”*
– Barrack Obama
The famous war of Umberkhind is mentioned in the Guinness Book of World Records:
*”The 30,000 strong army of Kartalab Khan from Uzbekistan was defeated by mere 1000 mawalas of Shivaji. Not a single Uzbeki was left alive to return back home.”*
Shivaji was a King of International fame. In the span of 30 yrs of his career he fought with only two Indian warriors. All the others were outsiders.
Shahista Khan, who feared Shivaji even in his dreams was King of Abu Taliban and Turkistan.
Behlol Khan Pathan, Sikandar Pathan, Chidar Khan Pathan were all warrior Sardars of Afghanistan.
Diler Khan Pathan was the great warrior of Mongolia. All of them bit dust in front of Shivaji.
Sidhhi Jowhar and Salaba Khan were Iranian warriors, who got defeated by Shivaji.
Sidhhi Jowhar later planned a sea attack. In response Shivaji raised a navy, the first Indian Navy. But before accomplishing the task Shivaji left this world. (He was poisoned by a Brahmin)
Google *”Shivaji, the Management Guru.”* It’s a full subject in Boston University of USA.
Yet, we Indians know so little about him