शाहीन बाग~ “धरना जिहाद” 19.1.2020


From: Vinod Kumar Gupta < >

*शाहीन बाग~ “धरना जिहाद”*        19.1.2020

◼दिल्ली में यमुना के साथ-साथ बसी अवैध कालोनी शाहीन बाग पिछले एक माह (15.1.2020)  से निरंतर चर्चा में बनी हुई है। यहां पर केंद्र सरकार द्वारा विधिवत पारित ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ के विरोध में मिथ्या प्रचार करके कुछ असामाजिक तत्वों का साथ लेकर विरोधी पक्ष के नेता व सेक्युलर बुद्धिजीवी धरना-प्रदर्शन करवा कर देश में शांति व्यवस्था व साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने का कुप्रयास कर रहे हैं।

◼प्राप्त सूत्रों के अनुसार यह अवैध कालोनी ‘शाहीन बाग’ मुख्यतः मुस्लिम बहुल कालोनी है। निसन्देह अगर सघन जॉच की जाय तो यहां बग्लादेशी, पाकिस्तानी, अफगानी व म्यांमार के मुस्लिम घुसपैठियों की अधिक संख्या होगी।यह संशोधित कानून ऐसे अवैध नागरिकों व घुसपैठियों को भी सबसे अधिक प्रभावित करेगा। यहां एक विशेष ध्यान देना होगा कि हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र व प्रदेश सरकार को बार-बार यह निर्देश दिए हैं कि ऐसे घुसपैठियों को देश से निकालना राष्ट्रहित में होगा। इसीलिए पहले ही पर्याप्त देर होने पर भी अब यह कानून बनाया गया है। जिसके अंतर्गत पड़ोसी मुस्लिम देशों के पीड़ित गैर मुस्लिमों को नागरिकता दी जाएगी और मुस्लिम घुसपैठियों को देश से बाहर भेज कर दशकों पुरानी समस्या का समाधान होगा।

◼इस अवैध कालोनी शाहीन बाग में धरना देने वालों में अधिकांश छोटे-छोटे मुस्लिम नाबालिग बच्चे व बुजूर्ग मुस्लिम महिलाओं को बैठाया गया है। कुछ समाचारों से ज्ञात हो रहा है कि दैनिक भत्ते के रूप में धरने में बैठने वालों को प्रतिदिन पांच सौ रुपये तक दिए जाने के अतिरिक्त भोजन आदि की भी पूरी व्यवस्था की गई है।इस सब के पीछे कौन षड्यंत्रकारी है जो लाखों-करोड़ों रूपया इन घुसपैठियों/आतंकवादियों व उनके समर्थकों पर खर्च कर रहे है? समाचार पत्रों व समाचार चैनलों द्वारा ज्ञात हो रहा है कि इन प्रदर्शनकारी बच्चों व महिलाओं को इस कानून के बहाने सरकार को मुस्लिम विरोधी बता कर उकसाया जा रहा है। जिससे अज्ञानी बच्चे व बुजूर्ग महिलाएं मुस्लिम कट्टरपन के पूर्वाग्रहों के कारण सरलता से बहकावे में आ जाते हैं।

◼यह सर्वविदित ही है कि ‘इस्लामिक कट्टरता’ ही विश्व में शान्ति स्थापित करने में सबसे बड़ी बाधा बनती जा रही है। जिहादियों को जनूनी बना कर एकजुट करने में मजहबी कट्टरता ही उत्प्रेरक का कार्य करती है। शाहीन बाग का यह धरना  लाखों नागरिकों की दिनचर्या में बाधक बन चुका है। ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली का यह क्ष्रेत्र जिहादियों ने बंधक बना लिया है। जबकि उच्च न्यायालय के आदेश के उपरांत भी पुलिस अभी कोई कठोर निर्णय लेने से बच रही है। सोची समझी रणनीति के अंतर्गत नाबालिग बच्चों व महिलाओं को आगे करके ये प्रदर्शनकारी स्वयं किसी भी दंडात्मक कार्यवाही से बचना चाहते हैं। लेकिन इस संभावना को भी ध्यान करना होगा कि अगर इन धरना-प्रदर्शनों में सम्मलित बुरके वाली महिलाओं की भीड़ में कोई आतंकवादी घुसा हुआ हो तो उसका उत्तरदायी कौन होगा? ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में पुलिस को अपने विवेक से अविलंब आवश्यक निर्णय लेने ही होंगे।

◼इस धरने-प्रदर्शन से सम्बंधित अनेक वाद-विवाद टी वी चैनलों पर पक्ष-विपक्ष में नित्य प्रसारित किए जा रहे हैं, परन्तु पूर्वाग्रहों से ग्रस्त कई प्रवक्ता कोई सार्थक तथ्य देने के स्थान पर उल्टा भ्रम पैदा कर रहे हैं। जिससे वातावरण  दूषित हो रहा है और समाज में घृणा भी फैल रही है। इन विभिन्न तथाकथित ज्ञानी प्रवक्ताओं व राजनैतिक   विश्लेषकों की टी.वी.डिबेट्स से तो राष्ट्रहित के स्थान पर इन प्रदर्शनकारियों, घुसपैठियों व राजनैतिक विरोधियों का ही उत्साहवर्धन हो रहा है।

◼प्रायः दशकों से ऐसे समाचार आते रहे हैं कि ये घुसपैठिये अनेक आपराधिक व आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं। साथ ही इनके द्वारा देश के सीमित संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ पड़ने से स्थानीय नागरिकों का सामान्य जीवन भी अस्तव्यस्त हो रहा है। देश में बढ़ती जनसंख्या में भी इन घुसपैठियों की षडयंत्रकारी भूमिका है। बिगड़ते जनसंख्या अनुपात के कारण लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी निकट भविष्य में बढ़ते संकट को नकारा नहीं जा सकता।
विशेष ध्यान करना होगा कि इस्लामिक कानून शरिया से चले दुनिया की महत्वाकांक्षा वाले जिहादी अपने लक्ष्य को पाने के लिए है जगह-जगह मुस्लिम घुसपैठियों को दशकों से बसाने में लगे हुए हैं। भारत में भी इसी एजेंडे के अंतर्गत वर्षो से मुस्लिम घुसपैठ बढ़ायी जा रही हैं।

◼इस संशोधित कानून से मुस्लिम घुसपैठियों को नागरिकता न देने व इस्लाम से पीड़ित गैर मुस्लिमों को देश में बसाने से स्थानीय मुस्लिम नागरिकों को किसी भी प्रकार से कोई हानि नहीं होने वाली। यह कानून किसी भी भारतीय नागरिक पर लागू ही नहीं होता। इस कानून के द्वारा मुस्लिम घुसपैठियों व अवैध नागरिकों को देश से बाहर निकालने के कारण बढ़ते अपराध व आतंकवाद को नियंत्रित किया जा सकेगा। साथ ही अनेक भारतविरोधी षड्यंत्रों पर अंकुश लगेगा और राष्ट्रीय सुरक्षा में भी अहम भूमिका निभाएगा।

◼इस कानून का अनावश्यक विरोध करने के लिए शाहीन बाग धरने को मॉडल बना कर देश के अन्य नगरों में मुस्लिम समाज को भी भड़काने का कार्य विभिन्न षड्यंत्रकारियों द्वारा किया जा रहा है। जिससे कुछ नगरों में षडंयत्रकारी मुस्लिम महिलाओं व बच्चों में पैठ बनाने में सफल भी हुए हैं। परिस्थितिवश ऐसा माना जा सकता है कि इस कानून की आड़ में जिहादी शक्तियां,विपक्षी राजनैतिक दल, विदेशी सहायता प्राप्त सामाजिक संगठन व सेक्युलर बुद्धिजीवियों का गठजोड़ अपने-अपने निहित स्वार्थों के लिए सक्रिय हो गया है। इसीलिए सेक्युलर व वामपंथी बुद्धिजीवी एवम पत्रकार सबसे आगे रह कर इस जिहादी सोच को पोषित कर रहे हैं। वहीं सत्ताहीन राजनैतिक दल सत्ता सुख के लिए विचलित है और सशक्त भाजपानीत सरकार पर आक्रामक होने का कोई अवसर छोड़ना नहीं चाहते।

◼इसी दूषित मानसिकता से ग्रस्त तत्वों के कारण ही पिछले दिनों जामिया, जेएनयू व अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालयों आदि में  हिंसा भड़की, जो सड़कों से होते हुए मस्जिदों को भी प्रभावित करके कट्टरपंथियों को उकसाने में सफल हुई।परिणामस्वरूप 20 दिसम्बर 2019 को जुमे के नमाज के बाद जिस तरह से देश के अनेक नगरों में एक साथ हिंसात्मक प्रदर्शन किये गए उससे किसी गहरे षडयंत्र का आभास होना स्वाभाविक है। अनेक स्थानों पर फैज की नज्म “हम देखेंगे…” के सहारे भारतीय संविधान को चुनौती देकर ये जिहादी देश को क्या संदेश देना चाहते हैं?

◼इस कानून की सत्यता को समझने के स्थान पर ये कट्टरपंथी लोग मिथ्या दुष्प्रचार को सत्य मान कर भड़क रहे हैं। जिहाद में आज़ादी के नारे लगाने का बहुत पुराना सिलसिला अभी भी जारी है। क्या कोई मुसलमान भारत में गुलाम है या असुरक्षित हैं। जबकि वह किसी भी मुस्लिम राष्ट्र से अधिक भारत में सबसे ज्यादा सुखी व समृद्ध है।
चिंतन करना चाहिये कि जहां  मुसलमान अल्पसंख्यक होते हैं तो जिहाद के लिये आज़ादी के नारे लगाते है, परंतु जहां बहुसंख्यक होते हैं तो वहां के गैर मुस्लिमों (अल्पसंख्यक) को (जैसे पड़ोसी मुस्लिम देशों व अन्य मुस्लिम देशों में भी होता है) कोई आज़ादी नहीं देते। यह दोहरापन भी जिहादी शिक्षा है। इसीलिए जगह-जगह आज़ादी के नाम पर विभिन्न प्रकार के नारे लगा कर उकसाया जाना जारी है। एक नारा “जिन्ना वाली आज़ादी”  का क्या अर्थ है? क्या इन प्रदर्शनकारियों को एक और पाकिस्तान चाहिये ? क्या ऐसी अभिव्यक्ति के नाम पर देशद्रोह का वातावरण बनाया जाना उचित है?

◼नागरिकता संशोधन कानून का झूठा व भ्रमित प्रचार करके उसकी वास्तविकता को छिपाने के लिए किये जा रहे ऐसे धरने-प्रदर्शन व आंदोलन जिहाद के अंतर्गत ही सिखाये जाते हैं। अतः दिल्ली की अवैध कालोनी शाहीन बाग के इस न थमने वाले धरने प्रदर्शन को राष्ट्रव्यापी बनाने का दुःसाहस करने वालों के ऐसे राष्ट्रविरोधी धरना-प्रदर्शनों को केवल “धरना जिहाद” ही माने तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।

✍🏼विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चितंक व लेखक)
गाज़ियाबाद, 201001
उत्तर प्रदेश (भारत)

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Author: Vyasji

I am a senior retired engineer in USA with a couple of masters degrees. Born and raised in the Vedic family tradition in Bhaarat. Thanks to the Vedic gurus and Sri Krishna, I am a humble Vedic preacher, and when necessary I serve as a Purohit for Vedic dharma ceremonies.

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