“शक्ति के उपासक बनें “


From: Vinod Kumar Gupta < >

“शक्ति के उपासक बनें ”

भारत भूमि के महान सपूत महर्षि अरविन्द ने वर्षों पूर्व जब हम अंग्रेजों के अधीन थे, अपनी एक छोटी रचना ‘भवानी मंदिर’ की भूमिका में लिखा था कि “हमने शक्ति को छोड़ दिया है , इसलिए शक्ति ने भी हमें छोड़ दिया”। अतः पराधीनता में रहना हमारी दुर्बलता का ही परिणाम था। अनेक मनीषियों ने लिखा व कहा भी था कि सदियों की पराधीनता से हमारी शक्तियाँ दुर्बल हुई हैं , अतः इससे मुक्त होना सर्वाधिक आवश्यक है।स्वामी विवेकानंद ने भी हिन्दुओं को निर्भीक व बलवान बनने के लिए प्रेरित किया था । हिन्दू समाज की दुर्बलता, कायरता व भीरुता को गोरखनाथ पीठ के  ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ व महंत अवैद्यनाथ जी भी समझते थे और इस आत्मघाती अवगुण से समाज को बाहर लाने का निरंतर प्रयास करते रहे । उसी  धरोहर और परंपराओं को अनेक अवरोधों के उपरान्त भी निभाने वाला एक संत आज अपने समाज का अग्रणी सारथी बन गया है।
अपने अथक परिश्रम, तपस्या व सत्यनिष्ठा के बल पर योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बनने से तथाकथित अनेक सेक्युलर बुद्धिजीवियों की बेचैनी  बढ़ गयी है । ऐसा लगता है कि अब उनके ढोंग का साम्राज्य अपनी विदाई की प्रतीक्षा कर रहा हो । किसी को ‘संविधान पर संकट’ तो किसी को  ‘इस्लाम की रक्षा’  चिंतित कर रही है ।
देश विरोधियों व द्रोहियों से त्रस्त हमारा भारतवर्ष स्वतंत्रता के पश्चात स्वछंद होकर अपनी सांस्कृतिक विरासत को भी सुरक्षित नहीं रख पाया। इतना ही नहीं अनेक अवसरों पर भारतीय समाज अपने मान बिंदुओं के लिए भी आग्रही नहीं हो सका । गांधी-नेहरु की मुस्लिम उन्मुखी राजनीति ने आने वाले राजनेताओं को भी मुस्लिम परस्ती का ही मार्ग दिखा कर सत्ता पाने के मोह में डाल दिया। तत्पश्चात लगभग सत्तर वर्षों से राष्ट्रवादी मूल भारतीय समाज शासकीय व्यवस्थाओं में जकड़ता रहा है।
मध्यकालीन मुस्लिम बर्बरता के इतिहास को भुला कर भी अगर  देश विभाजन पूर्व व पश्चात हुई भीषण त्रासदी का ही अवलोकन किया जाये तो मुस्लिम अत्याचारों की भयानक घटनायें मानवता को लज्जित करते हुए करोड़ों हृदयों को द्रवित व आक्रोशित कर देती हैं।उसमें चाहे कोलकात्ता में मुस्लिम लीगियों द्वारा  ( 16  से 18 अगस्त ) 1946 की सीधी कार्यवाही (डायरेक्ट एक्शन) में लुटे-मारे गये हज़ारो निर्दोष हिन्दुओं का नरसंहार हो और चाहे विभाजन (1947 ) के समय पाकिस्तान से आई असंख्य हिन्दुओं के शवों से लदी दर्ज़नों ( लगभग 58 ) रेलगाड़ियाँ हों । अनुमानतः 15 लाख से ऊपर हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया साथ ही कश्मीर पर आक्रमण करके पाकिस्तानियों ने हिन्दुओं को परिवार सहित कत्ल करना और  हज़ारो हिन्दू अबलाओं को  ट्रको में भरकर ले जाना आदि दिल दहलाने वाली दास्तान भुलाने योग्य नहीं हैं। विश्व के इतिहास में संभवतः इतनी भयंकर मानवीय त्रासदी कही ओर देखने को न मिले फिर भी हमारे  अधिकांश राजनैतिक व बौद्धिक समाज की सहानभूतियाँ “जिन्नावादियों” के साथ थी और अभी भी यथावत बनी हुई हैं।
निःसंदेह स्वतंत्रता के पश्चात हमको इतना दुर्बल  व संकल्पहीन समझा जाने लगा कि विदेशी आक्रमण व अतिक्रमण (घुसपैठ) होने लगे । जब हमारा तत्कालीन नेतृत्व ही शांति, अहिंसा और भाईचारे के सहारे राज-काज चलाना चाहता था तो हम देशविरोधी शक्तियों को कैसे रोक सकते थे। यह सत्य जब तक समझ पाते तब तक हमारे लाखों निर्दोष नागरिकों व सैनिकों की बलि चढ़ चुकी थी।
राजनीतिक -बौद्धिक क्षेत्रों की बढ़ती अज्ञानता ने समाज को कायर बना कर स्वाभिमान से जीना ही भुला दिया। सशक्त व कुशल नेतृत्व के अभाव में देश में एकतरफा सामाजिक उत्पीड़न होता रहा। हमारा समाज राजनेताओं की ढुलमुल इच्छाशक्ति व स्वार्थसिद्धि के फेर में फँस कर स्वयं भी इसी भ्रम में जीता रहा । जिससे एक ऐसा वातावरण विकसित हुआ जिसके अनुसार साम्प्रदायिक सौहार्द व धर्मनिरपेक्षता बनाये रखने का उत्तरदायित्व केवल हिन्दू समाज का ही माना जाने लगा । जबकि कट्टरवादी मुस्लिम व ईसाई समाज को बहुसंख्यक हिन्दुओं  द्वारा दिए गए राजस्व से मालामाल करना सरकार की प्राथमिकता बना दी गयी। देश के अधिकांश बुद्धिजीवियों व राजनेताओं की अज्ञानता व अराष्ट्रीयता ने  संपूर्ण भारत को जाने-अनजाने एक अनिश्चचित व आत्मघाती मार्ग पर खड़ा कर दिया । परिणामस्वरूप कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक व अटक से लेकर कटक तक अराजकता व आतंकवाद का खुला मैदान बन गया। पाक परस्त मुस्लिम आतताइयों ने अपने आकाओं के सरंक्षण में सर्वप्रथम देव भूमि कश्मीर को हिन्दू विहीन किया। तत्पश्चात पूर्वोतर के असाम , मिजोरम,मेघालय, नागालैंड आदि प्रदेशों व केरल एवं पश्चिम बंगाल के अतिरिक्त संभवतः दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि देश का कोई कोना ऐसा न रहा हो जहाँ बम विस्फोटो से निर्दोषों का रक्त न बहा हो। गैर मुस्लिम बालिकाओं व युवतियों के शोषण ने तो जिहादियों को  “लव जिहादी” ही बना दिया । दुर्बलता का अनुचित लाभ उठा कर धर्मांधों ने धर्मांतरण से हिन्दुओं की भरपूर फसल काटी।
ऐसी विकट व विपरीत परिस्थितियों को झेल रहा राष्ट्रवादी समाज  कब तक अपनी अस्मिता व अस्तित्व के लिये संघर्ष नहीं करता ?  आज नहीं तो कल हमें अब अपने भलेपन के साथ साथ बलवान बनना ही होगा । जब दुर्जन एकजुट हो सकते है तो सज्जनों को एकत्रित होने से कौन रोक सकता है। हम “अश्वमेघ यज्ञ” की परंपरा वाली भूमि की संतानें हैं , जहाँ सभी देवी-देवताओं के शास्त्र व शस्त्रों से सुज्जित होने पर भी हमको अन्याय व अत्याचार सहने को विवश होना पड़ रहा है । हमारी संस्कृति हमें पाप और पुण्य का भेद बताती है साथ ही अधर्म पर धर्म की जीत का सन्देश देती है ।
इसी पृष्ठभूमि ने  मई 2014 में लोकसभा के लोकतांन्त्रिक चुनावी युद्ध में राष्ट्रवादियों ने  अपनी शक्ति का भरपूर सदुपयोग किया। इस ऐतिहासिक विजय से देश को महानायक के रुप में एक सशक्त साहसी व कर्तव्यनिष्ठ  शक्ति के उपासक श्री नरेंद्र मोदी के रुप में एक कुशल प्रशासक मिला। परंतु कुछ राज्यों में चुनावी गठबंधनों व कुछ षडयंत्रों के कारण  राष्ट्रवादियों को चुनावी-युद्ध में पराजय मिली। फिर भी अपने कार्यकौशल से विश्व में राष्ट्र का खोया सम्मान पुनः स्थापित करके मोदी जी ने करोडों देशवासियों को अपनी प्रशासकीय योग्यता से मुग्ध किया । वर्तमान प्रदेशीय चुनावों में मोदी-शाह की जोड़ी में शक्ति के उपासक योगी आदित्यनाथ के जुड़ने से उत्तर प्रदेश के भगवामय होने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो रहा है । यह  इस बात का प्रमाण है कि करोडों-करोड़ों देशवासियों ने लोकतांन्त्रिक व्यवस्था के चुनावो में जो एक अहिंसात्मक युद्ध है ,  में अपने अपने शस्त्ररुपी मतों का सदुपयोग करके शक्ति को संजोया है।
यहाँ यह लिखना भी सार्थक होगा कि इस धर्मयुद्ध रुपी यात्रा में मोदी जी के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चलने वाले भा.ज.पा. के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह की भूमिका किसी चाणक्य से कम नहीं रही। इस यज्ञ में आरंभ से ही जुड़े योगी जी की वर्षों की तपस्या और त्याग को भी भूला नहीं जा सकता । लोकसभा चुनाव के समय राष्ट्रवादियों ने एक नारा बुलंद किया  था ” देश में मोदी – प्रदेश में योगी” जो आज चरितार्थ हो रहा है । आज “माँ-भारती” के ये पुजारी करोडों देशवासियों की आशा के पुंज बन गये है । अतः हम अब शान्ति के लिये “शक्ति” के उपासक बनें ।

विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक व लेखक)
ग़ाज़ियाबाद
नोट: यह  लेेेख मैने पूर्व में (30.03.2017) को प्रेषित किया जा चुका है,फिर भी अभी भी प्रसांगिक हैं।

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Author: Vyasji

I am a senior retired engineer in USA with a couple of masters degrees. Born and raised in the Vedic family tradition in Bhaarat. Thanks to the Vedic gurus and Sri Krishna, I am a humble Vedic preacher, and when necessary I serve as a Purohit for Vedic dharma ceremonies.

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