मनु की छवि चमकाएगा संघ


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मनु की छवि चमकाएगा संघ
नवभारत टाइम्स हिंदी समाचार पत्र दिल्ली संस्करण में दिनांक 9 मई 2017 को यह समाचार छपा है। संघ से सम्बंधित संस्कार भारती के अमीर चंद द्वारा मनुवाद के सम्बन्ध में प्रचलित भ्रांतियों के निवारण करने का संकल्प लिया गया है। हम उनके इस निर्णय का स्वागत करते है। मनुस्मृति के सम्बन्ध में प्रचलित सभी भ्रांतियों का निवारण करने के लिए स्वामी दयानन्द के दृष्टिकोण को समझना अत्यंत आवश्यक हैं।
स्वामी दयानन्द एवं आर्यसमाज का मनुस्मृति के सम्बन्ध में सम्बंधित दृष्टिकोण
1. मनु स्मृति सृष्टि के प्रथम आदि राजा मनु द्वारा रचित प्रथम संविधान है।
2. स्वामी दयानन्द आधुनिक भारत के प्रथम ऐसे विचारक है जिन्होंने यह सिद्ध किया कि वर्तमान में उपलब्ध मनुस्मृति मनु की मूल कृति नहीं है।  उसमें बड़े पैमाने पर मिलावट हुई हैं। यही मिलावट मनुस्मृति के सम्बन्ध में प्रचलित भ्रांतियों का मूल कारण है।
3. मनुस्मृति पर सबसे बड़ा आक्षेप जातिवाद को समर्थन देने का लगता है। जबकि सत्य यह है कि मनुस्मृति जातिवाद नहीं अपितु वर्ण व्यवस्था की समर्थक है। वर्ण का निर्धारण शिक्षा की समाप्त होने के पश्चात निर्धारित होता था न कि जन्म के आधार पर होता था। मनु के अनुसार एक ब्राह्मण का पुत्र अगर गुणों से रहित होगा तो शूद्र कहलायेगा और अगर एक शूद्र का पुत्र ब्राह्मण गुणों वाला होगा तो ब्राह्मण कहलायेगा। यही व्यवस्था प्राचीन काल में प्रचलित थी। प्रमाण रूप में मनुस्मृति 9/335 श्लोक देखिये। शरीर और मन से शुद्ध- पवित्र रहने वाला, उत्कृष्ट लोगों के सानिध्य में रहने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला शूद्र भी उत्तम ब्रह्म जन्म और द्विज वर्ण को प्राप्त कर लेता है।
4. मनुस्मृति पर दूसरा बड़ा आक्षेप नारी जाति को निम्न दर्शाने का लगता है। सत्य यह है कि मनुस्मृति नारी जाति को पुरुष के बराबर नहीं अपितु उससे श्रेष्ठ मानती है। संसार की कोई भी धर्म पुस्तक में ऐसा मनु के विषय में विधान नहीं है। प्रमाण रूप में मनुस्मृति 3/56 श्लोक देखिये। जिस समाज या परिवार में स्त्रियों का आदर – सम्मान होता है, वहां देवता अर्थात् दिव्यगुण और सुख़- समृद्धि निवास करते हैं और जहां इनका आदर – सम्मान नहीं होता, वहां अनादर करने वालों के सभी काम निष्फल हो जाते हैं भले ही वे कितना हीश्रेष्ट कर्म कर लें, उन्हें अत्यंत दुखों का सामना करना पड़ता है|
5. मनुस्मृति पर तीसरा आक्षेप यह है कि मनुस्मृति पशु हिंसा की समर्थक है।यह भी एक भ्रान्ति है।  मनुस्मृति 5/15 का प्रमाण देखिए। अनुमति देने वाला, शस्त्र से मरे हुए जीव के अंगों के टुकड़े–टुकड़े करने वाला, मारने वाला, खरीदने वाला, बेचने वाला, पकाने वाला, परोसने या लाने वाला और खाने वाला यह सभी जीव वध में घातक–हिंसक होते हैं।
6. मनुस्मृति हमें धर्म-अधर्म, पञ्च महायज्ञ, चतुर्थ आश्रम व्यवस्था, समाज व्यवस्था के विषय में मार्गदर्शन करता है।  इसलिए वह आज भी प्रासंगिक है।
7. वर्तमान मनुस्मृति में 2685 श्लोकों में से 1471 श्लोक मिलावटी और 1214 श्लोक ही मौलिक हैं। यही मिलावटी श्लोक मनु स्मृति के विषय में भ्रांतियों का कारण है।  इसलिए इन मिलावटी श्लोकों को हटाकर सत्य श्लोकों को स्वीकार कीजिये। डॉ अम्बेडकर द्वारा मिलावट किये हुए 1471 श्लोकों में से 88 प्रतिशत श्लोकों का प्रयोग अपने लेखन में हुआ है। इससे यही सिद्ध होता है कि डॉ अम्बेडकर की मनुस्मृति के विषय में मान्यताएं मिलावटी अशुद्ध मनुस्मृति पर आधारित है।
8. आर्यसमाज के विद्वान् डॉ सुरेंदर कुमार द्वारा मनुस्मृति के विशुद्ध स्वरुप का भाष्य इस कार्य को जनकल्याण के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है। हमारे देश के सभी बुद्धिजीवियों को निष्पक्ष होकर उसे स्वीकार करना चाहिए।
मनुवाद, ब्राह्मणवाद चिल्लाने से कुछ नहीं होगा। बुद्धिपूर्वक यत्न करने में सभी का हित है।
डॉ विवेक आर्य
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Author: Vyasji

I am a senior retired engineer in USA with a couple of masters degrees. Born and raised in the Vedic family tradition in Bhaarat. Thanks to the Vedic gurus and Sri Krishna, I am a humble Vedic preacher, and when necessary I serve as a Purohit for Vedic dharma ceremonies.

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