From: Maj Gen Ashok Coomar < >
Many broken Jain Images found from a field in last few days @ Ishwaripura Village, Near Asai Village, District – Itawa, UP.
इटावा। धरती से निकली हजारों साल पुरानीऔर दुर्लभ मूर्तियां अब चर्चा का विषय बन गयी है। हालांकि ये सभी मूर्तियां खंडित हो चुकी हैं। क्योंकि ये मूर्तियां इकदिल थाना क्षेत्र के ईश्वरीपुरा गांव में एक खेत की जुताई के दौरान मिली है। एक साथ हजारों मूर्तियां निकलने से प्रशासन से लेकर पुरातत्व विभाग तक हैरान है। अब यह पता लगाने की कोशिश शुरू हो गयी है कि आखिर इन मूर्तियों का इतिहास क्या है।
दरअसल ईश्वरीपुरा गांव में खेत के मालिक वृजेश कुमार खेत में ट्रैक्टर से जुताई कर रहे थे। तभी उन्हें कुछ मूर्तियां खेत में दिखी। जिसके बाद आस पास के गांव वाले आना शुरू कर दिये। गांव वालों की मदद से खेत की खुदाई की गयी तो एक के बाद एक जैन धर्म की 1200 साल पुरानी खंडित मुर्तियां निकलती गयी। जिसके बाद गांव वालों ने जैन धर्म के लोगों को बुलाया। उन्होने बताया की ये मूर्तियां सैंकड़ों साल पुरानी हैं और इन्हें किसी राजा ने तोड़कर खेत में छुपा दिया था। जो आज ये मूर्तियां खुदाई में मिली हैं।
अनुमान है कि खेत में अभी और मूर्तियां हो सकती हैं। यह तो और खुदाई से ही पता चल सकेगा। देखने में मूर्तियां सैकड़ों वर्ष पुरानी हैं जो सफेद पत्थर, काले पत्थर व लाल पत्थर से निर्मित हैं। देखने वालों का कहना है कि जैन धर्म के अलावा भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं भी हैं। कुछ मूर्तियों पर लिखावट भी है, जिससे अनुमान है कि मूर्तियां हजारों वर्ष पुरानी हैं। ग्रामीणों ने बताया कि लगभग दो साल पहले उसी खेत दो मूर्तियां निकली थी। जिन्हें पेड़ के पास ही रख दिया गया था। उसके बाद दोबारा इतनी बड़ी संख्या में मूर्तियां मिली हैं। चर्चा है कि खजाना होने के संदेह में कई दिन पूर्व रात में किसी तांत्रिक ने उक्त स्थान पर खुदाई की थी। क्योंकि लोगों ने पूजा का सामान नारियल आदि पड़ा देखा था।
गौरतलब है कि इसी गांव के नजदीक है आसई गांव। जहां पर एक दशक से खंडित मूर्तियां निकलती रही हैं। सबसे खास बात तो यह है इस गांव के बासिंदे इन खंडित मूर्तियों की पूजा करके अपने आप को घन्य पाते हैं। यमुना नदी के किनारे बसा गांव आसई देश दुनिया का एक ऐसा गांव माना जा सकता है, जहां के वाशिंदे खंडित मूर्तियों की पूजा में विश्वास करते हैं। इस गांव के लोग किसी मंदिर में पूजा अर्चना नहीं करते हैं बल्कि हर घर में उनके आराध्य की मूर्तियां पाई जातीं हैं। घरों में प्रतिस्थापित यह मूर्तियां साधारण नहीं हैं। अपितु दसवीं से ग्यारहवीं सदी के मध्य की बताई जातीं हैं। दुर्लभ पत्थरों से बनी यह मूर्तियां देश के पुराने इतिहास एवं सभ्यता की पहचान कराती हैं। हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में काशी के बाद धार्मिक आस्था का केंद्र माना जाने वाला एवं जैन दर्शन में काशी से भी श्रेष्ठ आसई क्षेत्र पूर्व की दस्यु गतिविधियों के बाद से श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पा रहा है।
जैन दर्शन के मुताबिक मुख्यालय से करीब पंद्रह किमी दूर स्थित आसई क्षेत्र में जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने दीक्षा ग्रहण करने के बाद इसी स्थान पर बर्षात का चातुर्मास व्यतीत किया था। तभी से यह स्थान जैन धर्मावलंबियों के लिए श्रद्धा का केंद्र बन गया था। इसके अलावा तकरीबन दसवीं शताब्दी में राजा जयचंद्र ने आसई को अपने कन्नौज राज्य की उपनगरी के रूप में विकसित किया था और जैन दर्शन से प्रभावित राजा जयचंद्र ने अपने शासन के दौरान जैन धर्म के तमाम तीर्थंकरों की प्रतिमाओं को दुर्लभ बलुआ पत्थर से निर्मित कराई।
औरंगजेब ने जब धार्मिक स्थलों पर हमले किए तो यह क्षेत्र भी उसके हमलों से अछूता नहीं रहा। तमाम धर्मों से जुड़ी दुर्लभ मूर्तियों को क्षतिग्रस्त कर दिया। जो समय-समय पर इन क्षेत्रों में मिलती रहीं। अफसोस यह है कि आसई क्षेत्र में मिली तकरीबन पांच सौ मूर्तियों में से महज दर्जन भर मूर्तियां ही शेष हैं। आसई गांव के प्रधान रवींद्र दीक्षित कहना है कि आदि काल से इस तरह की मूर्तियां निकल रही है और श्रद्धाभाव से लोगों ने अपने घरों मे लगा रखी है और पूजा करते है। उनका कहना है कि गांव पर कभी यमुना के बीहड़ों मे सक्रिय रहे कुख्यात डाकुओं का प्रभाव देखा जाता रहा है। तभी तो एक समय करीब करीब पूरा गांव खाली हो गया था। लेकिन जैसे जैसे पुलिस डाकुओं का खात्मा किया। गांव वाले अपनी जमीनों और घरों की ओर वापस लौट आये।