कौशांबी मेट्रो स्टेशन पर ओवरब्रिज के नीचे सीएनजी ऑटो kaa Adharma


From: LightofTruth OM returntovedasom@gmail.com

Subject: कौशांबी मेट्रो स्टेशन पर ओवरब्रिज के नीचे सीएनजी ऑटो kaa adharma

 

सभी मित्रों से विनम्र निवेदन है की सिर्फ अपना ५ मिनट का समय इस पोस्ट को पढ़ने के लिए दें, कई मित्रों ने ऐसा देखा होगा बहुत बार, यह सत्य घटना है तथा पूरे देश में ये भ्रस्ताचार फैला हुआ है, सब मिले हुए हैं ऊपर से लेके नीचे तक ,,,,,,,,,,,,,,,,

कौशांबी मेट्रो स्टेशन पर ओवरब्रिज के नीचे सीएनजी ऑटो की कतार लगी है. तीन सवारियों के परमिट पर पास आटो में आठ सवारियां बैठी हैं और तीन और ज़बरदस्ती लादी जा रहीहैं. वहां खड़े मुसतंडो की कोशिश है कि एक दो और को भी जैसे-तैसे ऑटो पर टांग दिया जाए.

मैं एक मिनट रुक कर सोचता हूं कि कैसे बैठूं… फिर थोड़े इंतेज़ार के बाद एक खाली ऑटो, जो की बाकी से करीब दो मीटर आगे खड़ा है, में बैठ जाता हूं. मेरे साथ ही एक युवती भी ऑटो में चढ़ती है. मेरी बगल में बैठते ही उसके मोबाइल का क्रिएट मैसेज बटन एक्टिव हो जाता है. मैसेज टाइप कर रही है ( और मैं देख रहा हूं…)… मैसेज गया… और जवाब आने से पहले ही एक मैसेज और चला गया. वो मैसेज भेजने में मस्त है… मैं तांक झांक में. एक और युवक आकर हमारे साथ बैठ गया है. ऑटो में सवारी पूरी तीन. ट्रैफिक के नियमानुसार अब ऑटो को चल जाना चाहिए था.

सीट के सामने लगी पटरी पर एक और युवती आकर बैठ गई. रात के साढ़े आठ से थोड़ा अधिक वक्त हुआ है. बहुत थकी हुई लग रही है. दो और किशोर आए. पटरी पर बैठ गए. हमारी पिछली वाली सीट पर थोड़ी गुंजाइश है. एक किशोर हमारे बीच में जैसे-तैसे सैट हो जाता है. अब सामने वाली पटरी पर बस युवती बैठी है. दो और युवक आए और पटरी पर बैठ गए. ऑटो में बैठे हुए करीब दस मिनट हो गए हैं, अब सवारियां जल्दी घर पहुंचने और ऑटो में भीड़ की बातें करने लगी हैं. सभी के पास बयां करने के लिए अपनी राय है.

मुसतंडे सवारी पकड़-पकड़ कर ला रहे हैं और ऑटो में बिठा रहे हैं. पिछली सीट पर चार, सामने वाली पटरी पर तीन और आगे ड्राइवर के अगल-बगल में एक तरफ एक और दूसरी तरफ दो. कुल मिलाकर ऑटो में ड्राइवर समेत 11 सवारी बैठी हैं. सामने की पटरी पर बस इतनी ही गुंजाइश है कि उस पर बैठी सवारी अपना हाथ टिका दे. मुसतंडा एक और सवारी को पकड़ कर लाया. और पटरी पर बैठी सवारियों और सरकने के लिए कहने लगा. कौने में बैठी युवती बोली कि अगर और सरकी तो बाहर गिर जाउंगी.

यह सुनते ही मुसतंडे की आवाज में गर्मी आ गई. बोला, ‘मैडम ज़रा पिछले ऑटो में भी देख लीजिए… यहां सभी में चार ही बैठती हैं, आपको अगर आराम से जाना है तो पर्सनल ऑटो करिये… या फिर दो सवारियों की जगह में बैठ रही हैं तो फिर दो के पैसे दीजिए.’ वो बोले जा रहा था, दो-चार मुसतंडे और आ गए, बाकी खड़े ऑटो के ड्राइवर भी इकट्ठा हो गए. मैं पहले कई बार ऐसे मामलों में दखल दे चुका था, सोचा इस बार कुछ न ही बोलू… लेकिन जब बात हद से बाहर होती दिखी तो बोलना ही ज़रूरी समझा.

आवाज़ में नरमी के साथ मैंने भी कह दिया, ‘भाई साब ये लड़की क्या गलत कह रही है, जो पटरी ऑटो में होनी ही नहीं चाहिए वो लगाकर तीन सवारी तो आप बिठा ही चुके हो, अब एक और ज़बरदस्ती लाद रहे हो, अगर ये बेचारी रास्ते में गिर गई तो जि़म्मेदार कौन होगा, अब रहम करो और ऑटो निकलने दो.’

मेरी बोलते ही उसकी आवाज़ में और गर्मी आ गई, माहौल ऐसा हो गया जैसे किसी दबे-कुचले ने गली के दादा के सामने बोलने की हिम्मत कर दी हो. बोला यहां तो चार ही बैठेंगी जिसे दिक्कत हो उतर जाए… लो जी… ज़रा सो बोलने की कीमत रात में ऑटो से बाहर. खैर कोई ऑटो से नहीं उतरा. हम कहना ही चाह रहे थे कि ऑटो आगे बढ़ाईये वरना पुलिस को बुलवा लेंगे… मुसतंडे ने पहले ही बोल दिया. पुलिस को बुलाने के बारे में सोच रहे हैं, बुला लीजिए, जोर आज़मा कर देख लीजिए, बहुत पैसा खर्च करते हैं, बेकार में लाल पीले हो जाओगे.

मामला गर्म हो चुका था, मुसतंडे खुद को मोगेंबो समझ रहे थे, हमने भी 100 नंबर डॉयल कर दिया. मामला बताते ही फोन कट. ट्रैफिक पुलिस का नंबर भी नहीं दिया, बोले वहीं लिखा होगा कहीं दीवार पर. जैसे दीवार पर नंबर लिखकर ट्रैफिक पुलिस की जिम्मेदारी खत्म.

फोन रखते ही मुसतंडों का पारा और गर्म हो गया. उनका पैसा असर दिखा रहा था. आवाज़ में और रौब लाकर बोला, सामने पुलिस चौकी है, वहां भी जोर आज़माइश करके देख लीजिए… हम कुछ बोलते उससे पहले ही बोला, लो जी चौकी इंचार्ज साहब को यहीं बुलवा लेते हैं. एक मिनट बाद विशाल यादव नाम का चौकी इंचार्ज आ गया…

आते ही बोला, कौन गर्मी दिखा रहा है, हां भई! क्या दिक्कत है, कितनी सवारी है तेरे साथ, कहां जाएगा, क्या करता है… मैंने कहा, मैं अकेला ही हूं, सामने वाली लड़की को दिक्कत है, तीन सवारियां बैठी हैं ये जबरदस्ती चार बिठा रहा है… बात पूरी करता उससे पहले ही चौकी इंचार्ज बोल पड़ा… बिठा रहा है तो क्या दिक्कत है, नहीं बैठना उतर जाओ…

मुझे थोड़ा सा गुस्सा आया, आवाज ऊंची करके इतना ही कहा, दिक्कत यह है कि ये ऑटो तीन सवारियों पर पास है, और इससे ज्यादा बैठने में जान का ख़तरा है, अपनी ड्यूटी करो, चालान बुक निकालो और ओवरलोडिंग पर इसका चालान काटो…

विशाल यादव के तेवर यह सुनते ही ठंडे पड़ गये. ड्राइवर से बोला… चले इसे आगे बढ़ा… और ऑटो 11 सवारी (टोटल 12 से एक कम लेकर आगे चल पड़ा.)

ऑटो में बैठी भारत की युवा पीढ़ी इसे बुराई पर अच्छाई की विजय मान रही थी. आगे बैठे एक लॉ के छात्र बोले, भाईसाब मैं आपकी बहस बड़ी ध्यान से सुन रहा था. मैं रोज़ चलता हूं, लेकिन ये सिस्टम है, आप अकेले सिस्टम नहीं बदल सकते. लेकिन आपने जो पुलिस वाले को झाड़ा मुझे बहुत अच्छा लगा. अपना हौसला बनाए रखिएगा.

एक और भाईसाब बोले, ‘यार सारा सिस्टम खराब है, और हम चाहे तो इसे बदल सकते हैं, लेकिन क्या करें हिम्मत नहीं होती. ये तो रोज की ही बात है.’

बाकी सवारियों ने भी अपनी राय रखनी शुरु की… अब मेरे बोलने की बारी आई… मैंने भी कह दिया, ‘ये मेरी बगल में भारत का भविष्य बैठा है, देख लीजिए मोबाइल में मस्त हैं, मोबाइल पर खर्च होने वाले हर घंटे पर ये दो मिनट भारत की सेवा में लगा दें तो देश की तकदीर बदल जाए…’

मैडम बोल पड़ी, अंकल मुझमें भी बहुत जोश है, अभी देखा नहीं है आपने, मैं भी चाहती हूं कि भारत अच्छा हो, मैं भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ती हूं… आपका संदेश में बहुत लोगों तक पहुचाउंगी…

अब तक ऑटो का ड्राइवर खामोश था. मौका मिलते ही बोला, ‘भाई साब आप मेरा शुक्रिया मनाइये कि मैं वहां से ऑटो आगे बढ़ा लाया, मैंने ही सही सलामत निकाला है आपको वरना आज तो आपकी धुलाई होनी तय थी. ये जो वहां खड़े थे ये बहुत बुरा मारते हैं…’

उसकी बात बीच में काटकर मैं बोल पड़ा…’ये मारने पीटने की नहीं, गणित की बात करो, ये बताओं की रोज का कितना देते हैं.’

ड्राइवर बोला, ‘हर चक्कर पर तीस रुपए देते हैं, लेकिन सारा पैसा ये मुसतंडे नहीं रखते, वो बेचारे तो उतना ही रखते हैं जितना जायज हो. आपको लग रहा होगा बहुत कमाते हैं, लेकिन खर्च लायक ही मिल पाता है उन्हें, बाकी तो चौकी इंचार्ज धर लेता है जो ऊपर तक पहुंचाता है. पूरा रैकेट शुक्ला नाम का आदमी चला रहा है, 22 साल मुलायम की कोठी पर रहकर आया है, बहुत ऊपर तक पहुंच है. पूरे एनसीआर में वसूली का धंधा है. और वो भी सभी नहीं रखता, सबसे मोटा हिस्सा तो अपने अखिलेश भैय्या के पास जाता है.’

एक भाई साब अब तक शांत बैठे थे, वो बोल पड़े, ‘हम सवारियां तो बकरी हैं, जिधर लाठी पड़े उधर मुंह दबा कर चल दे, ये सवारी बिठा रहे लौंडे कुत्ते थे… पालतू कुत्ते… वो जो पुलिसवाला आया वो भैंकाऊं कुत्ता था… एकदम भौंकने वाली नस्ल का. जितना भौंकेगा उतनी बोटी मिलेगी. लेकिन ये समझ में नहीं आ रहा कि ये अखिलेश यादव कौन सी नस्ल का कुत्ता है. इसके पास रहने के लिए बड़ा बंगला है, उड़ने के लिए हवाई जहाज है, पूरे प्रदेश की पावर है, इसकी कौन सी भूख है जो शांत नहीं हो रही, वसूली करवा रहा…’

हमारे प्रिय मुख्यमंत्री की शान में और गुस्ताखी होती उससे पहले ही मैंने फिर बात का रुख ड्राइवर की ओर कर दिया… तो भाई साब कुल कितने ऑटो चलते होंगे और एक ऑटो कितने चक्कर मारता होगा…

‘कौशांबी मेट्रो से रोज 200 से ज्यादा ऑटो चलते हैं, हर ऑटो के चार-पांच चक्कर तो लग ही जाते हैं…’ मतलब रोजाना के करीब 30 हजार यानी महीने के कम से कम 9 लाख रुपए सिर्फ चौकी पर एक स्टैंड के ऑटो ही चढ़ा रहे हैं…

इस गणित का एक पहलू यह भी है कि ऑटो में बैठने वाली 11 सवारियों में से तीन का पैसा वसूली में जाता है. यानी हर चौथी सवारी घूस दे रही है. मतलब यह है कि यदि आप रोज के बीस रुपए ऑटो किराये में खर्च करते हैं तो महीने के 150 रुपये सिर्फ वसूली में देते हैं. ऑटो में जान जोखिम में डालकर लटक कर जाते हैं आप और मलाई लूटते हैं हमारे अखिलेश भैय्या…

जब हर महीने 150 रुपए रंगदारी देने के बाद आप ही कुछ कहना या करना नहीं चाहते तो मैं भी इस लेख में और शब्द बर्बाद क्यों करूं. आपकी भावनाओं को शब्द देते हुए एक लोकप्रिय नौजवान मुख्यमंत्री को कुत्ता तो लिख ही चुका हूं… लेकिन सवाल यही है कि क्या लिखकर भी कुछ हो सकेगा… जानता हूं लिखना इस समस्या का समाधान नहीं है, अगर आपके पास कोई समाधान हो तो जरूर बताएं वरना हर महीने के 150 भैय्या के कुत्तों को खिलाते रहें…

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The solution is: OM kraanti, kraanti, kraanthi ! – Skanda987

 

 

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Author: Vyasji

I am a senior retired engineer in USA with a couple of masters degrees. Born and raised in the Vedic family tradition in Bhaarat. Thanks to the Vedic gurus and Sri Krishna, I am a humble Vedic preacher, and when necessary I serve as a Purohit for Vedic dharma ceremonies.

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