मेरी गांधीजी से शिकायत

From Bharat < >

मेरी गांधीजी से शिकायत-

तुम चाहते तो लालकिले पर भगवा फहरा सकते थे,

तुम चाहते तो तिब्बत पर भी झंडा लहरा सकते थे,

तुम चाहते तो जिन्ना को चरणों में झुकवा सकते थे,

तुम चाहते तो भारत का बंटवारा रुकवा सकते थे।

तुम चाहते तो अंगेजो का मस्तक झुकवा सकते थे,

तुम चाहते तो भगतसिंह की फाँसी रुकवा सकते थे।

 

इंतजार ना होता इतना तभी कमल खिलना तय था,

सैंतालिस में ही भारत माँ को पटेल मिलना तय था।

लेकिन तुम तो अहंकार के घोर नशे में झूल गए,

गांधीनीति याद रही भारत माता को भूल गए।

सावरकर से वीरो पर भी अपना नियम जाता डाला।

गुरु गोविन्द सिंह और प्रताप को भटका हुआ बता डाला,

भारत के बेटो पर अपने नियम थोप कर चले गए,

बोस पटेलों की पीठो में छुरा घोप कर चले गए।

 

तुमने पाक बनाया था वो अब तक कफ़न तौलता है,

बापू तुमको बापू तक कहने में खून खौलता है।

साबरमती के वासी सोमनाथ में गजनी आया था,

जितना पानी नहीं बहा उतना तो खून बहाया था।

सारी धरती लाल पड़ी थी इतना हुआ अँधेरा था,

चीख चीख कर बोलूंगा मैं गजनी एक लुटेरा था।

 

सबक यही से ले लेते तो घोर घटाए ना छाती,

भगतसिंह फाँसी पर लटके ऐसी नौबत ना आती।

अंग्रेजो से लोहा लेकर लड़ना हमें सीखा देते,

कसम राम की बिस्मिल उनकी ईंट से ईंट बजा देते।

 

अगर भेड़िया झपटे तो तलवार उठानी पड़ती है,

उसका गला काटकर अपनी जान बचानी पड़ती है।

छोड़ अहिंसा कभी कभी हिंसा को लाना पड़ता है,

त्याग के बंसी श्री कृष्ण को चक्र उठाना पड़ता है।–

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We found the above lines PAR EXCELLENCE. Inspired by these we wish to addressModiji, too, to come up to our expectations and “dump” Gandhi if you understand the lines,

अगर भेड़िया झपटे तो तलवार उठानी पड़ती है,

उसका गला काटकर अपनी जान बचानी पड़ती है।

छोड़ अहिंसा कभी कभी हिंसा को लाना पड़ता है,

त्याग के बंसी श्री कृष्ण को चक्र उठाना पड़ता है।–

 

-rajput

हैदराबाद सत्याग्रह में अपने प्राणों की आहुति देने वाले धर्मवीरों के प्रति श्रद्धांजलि

From: Vishvapriya Vedanuragi  < >

हैदराबाद सत्याग्रह में अपने प्राणों की आहुति देने वाले धर्मवीरों के प्रति श्रद्धांजलि
.
श्रद्धांजलि अर्पण करते हम, करके उन वीरों का मान,
धार्मिक स्वतन्त्रता पाने को, किया जिन्होंने निज बलिदान |
परिवारों के सुख को त्यागा, युवक अनेकों वीरों ने,
कष्ट अनेकों सहन किये पर, धर्म न छोड़ा वीरों ने |
ऐसे सभी धर्मवीरों के, आगे शीष झुकाते हैं,
उनके गुण-कर्मों को हम, निज जीवन में अपनाते हैं |
अमर रहेगा नाम जगत् में, इन वीरों का निश्चय से,
उनका स्मरण बनायेगा फिर, वीर जाति के निश्चय से,
करें कृपा प्रभु आर्य जाति में, कोटि-कोटि हों ऐसे वीर,
देश धर्म हित खुशी -खुशी, जो प्राणों को अपने दें वीर |
जगत् पिता को साक्षी रखकर, यही प्रतिज्ञा करते हैं,
इन वीरों के चरण चिह्न पर, चलने का व्रत धरते हैं |
सर्वशक्तिमाय दे बल ऐसा, धीर-वीर सब आर्य बनें,
पर उपकार परायण निशदिन, शुभ गुणकारी आर्य बनें |
.
निजाम-हैदराबाद आर्य सत्याग्रह विजय दिवस की बधाई हो |

Hindi Poem: वे सौ दिनों में ही जवाब मांग रहे है !

From: Asha Gupta < >

 A Hindi Poem: Jai Ho.

वे सौ दिनों में ही जवाब मांग रहे है

 

  जो पढ़ सके न खुद वो किताब मांग रहे है

खुद रख न पाए वे हिसाब मांग रहे है।

जो कर सके न साठ साल में कोई विकास

वे सौ दिनों में ही जवाब मांग रहे है।

आज गधे गुलाब मांग रहे है

चोर लुटेरे इन्साफ मांग रहे है।

जो लुटते रहे देश को 60 सालों तक,

सुना है आज वो 1OO दिन का हिसाब मांग रहे है?

जब 3 महीनो में पेट्रोल की कीमते 7 रुपये तक कम हो जाये,

जब जब 3 महीनो में डॉलर 68 से 60 हो जाये,

जब 3 महीनो में सब्जियों की कीमते कम हो जाये,

जब 3 महीनो में सिलिंडर की कीमते कम हो जाये,

जब 3 महीनो में बुलेट ट्रैन जैसे टेन् भारत में चलाये जाना को सरकार की हरी झंडी मिल जाये,

जब 3 महीनो में सभी सरकारी कर्मचारी समय पर ऑफिस पहुचने लग जाये,

जब 3 महीनो में काले धन पर  एक कमिटी बन जाये,

जब 3 महीनो में पाकिस्तान को एक करारा जवाब दे दिया जाए,

जब 3 महीनो में भारत के सभी पडोसी मुल्को से रिश्ते सुधरने लग जाये,

जब 3 महीनो में हमारी हिन्दू नगरी काशी को स्मार्ट सिटी बनाने जैसा प्रोजेक्ट पास हो जाये,

जब 3 महीनो में विकास दर 2 साल में सबसे ज्यादा हो जाये,

जब हर गरीबो के उठान के लिए जान धन योजना पास हो जाये.

जब इराक से हज़ारो भारतीयों को  सही सलामत वतन वापसी हो जाये!

 

तो भाई अछे दिन कैसे नहीं आये???

 

वो रस्सी आज भी संग्रहालय में है  जिस्से गांधी बकरी बांधा करते थे

किन्तु वो रस्सी कहां है जिस पे भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु हसते हुए झूले थे?

 

हालात.ए.मुल्क देख के रोया न गया… कोशिश तो की पर मूंह ढक के सोया न गया”.

देश मेरा क्या बाजार हो गया है … पकड़ता हु तिरंगा तो लोग पूछते है

कितने का है…

 

वर्षों बाद एक नेता को माँ गंगा की आरती करते देखा है,

वरना अब तक एक परिवार की समाधियों पर फूल चढ़ाते देखा है।

वर्षों बाद एक नेता को अपनी मातृभाषा में बोलते देखा है,

वरना अब तक रटी रटाई अंग्रेजी बोलते देखा है।

वर्षों बाद एक नेता को Statue Of Unity बनाते देखा है,

वरना अब तक एक परिवार की मूर्तियां बनाते देखा है।

वर्षों बाद एक नेता को संसद की माटी चूमते देखा है,

वरना अब तक इटैलियन सैंडिल चाटते देखा है।

वर्षों बाद एक नेता को देश के लिए रोते देखा है,

वरना अब तक “मेरे पति को मार दिया” कह कर वोटों की भीख मांगते देखा है।

पाकिस्तान को घबराते देखा है, अमेरिका को झुकते देखा है।

इतने वर्षों बाद भारत माँ को खुलकर मुस्कुराते देखा है।

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miltaa hu.n roj khud se ..

मिलता हूँ रोज खुद से, तभी मैं जान पाता हूँ,

गैरों के गम में खुद को, परेशान पाता हूँ।

गद्दार इंसानियत के, जो खुद की खातिर जीते,

जमाने के दर्द से मैं, मोम सा पिंघल जाता हूँ।

ढलती हुयी जिंदगी को, नया नाम दे दो,

बुढ़ापे को तजुर्बे से, नयी पहचान दे दो।

कुछ हँस कर जीते तो कुछ रोकर मरते हैं,

किसी के काम आओ, कोई नया मुकाम दे दो।

माना की व्यस्त हूँ, जिंदगी की दौड़ में,

भूल जाता हूँ मुस्कराना, कमाने की हौड़ में।

थक कर आता हूँ शाम को, जब बच्चों के बीच मैं,

छोड़ आता हूँ सारे गम, गली के मोड़ में।

मुश्किलें आती हैं हरदम, मेरी राहों में,

मेरे हौसले का इम्तिहान लेती हैं।

बताती हैं डरना नहीं मुश्किलों से कभी,

नए रास्ते खोजने का पैगाम देती हैं।

अपनी शख्सियत को इतना ऊंचा बनाओ,

खुद का पता तुम खुद ही बन जाओ।

गैरों के लबों पर तेरा नाम, आये शान से,

मानवता की राह चल, गर इंसान बन जाओ।

किसी कविता में गर नदी सी रवानी हो,

सन्देश देने में न उसका कोई सानी हो।

छंद-अलंकार-नियमो का महत्त्व नहीं होता,

जब कविता ने दुनिया बदलने की ठानी हो।

कोई नागरिक मेरे देश का, नहीं रहे अछूता,

विकास का संकल्प हमारा, बना रहे अनूठा।

तुष्टिकरण का नहीं कोई, यहाँ जाप करेगा,

विकसित भारत, अब दुनिया का सरताज बनेगा।

केसरिया की शान, जगत में सबसे न्यारी,

भारत की धरती, दुनिया में सबसे प्यारी।

छः ऋतुओं का भारत, धारा पर एक मात्र है,

विश्व गुरु बनने की फिर से, कर ली है तैयारी।

फ़क़ीर के हाथ में, न कलम है न धन है,

मगर दुवाओं में किस्मत बदलने का ख़म है।

यह बहम नहीं हकीकत का फ़साना है,

माँ की दुवाओं में सारे जहाँ से ज्यादा दम है।

गिरगिट की तरह रंग बदलते हर पल,

तेरे लफ्जों में तेरा किरदार ढूँढूँ कैसे ?

कबि तौला कभी माशा, तेरे दाँव -पेंच,

तेरे जमीर को आयने में देखूं कैसे ?

मेरे गीत में शामिल थे तुम, तरन्नुम की तरह,

मेरे दर्द में शामिल हुए, बन दर्द की वजह।

सच्ची वफ़ा निभाई है, तुमने सदा मुझसे,

मेरे जनाजे में आये, अजनबी शख्स की तरह।

मंजिल की तलाश में, जो लोग बढ़ गए,

मंजिलों के सरताज, वो लोग बन गए।

बैठे रहे घर में, फकत बात करते रहे,

मंजिलों तक पहुँचना, उनके ख्वाब बन गए।

दुनिया के दर्द को नहीं, अपनी ख़ुशी को नए रंग देता हूँ,

आती जब भी मुसीबत कोई, “शुक्रिया” कह मैं हँस देता हूँ

डॉ अ कीर्तिवर्धन

वो सुबह अभी तो आयेगी – Modi’s Promise when elected as PM

The hearts of the people of Bhaarat desh is singing below song now when they have determined to vote for Narendra Modi.

वो सुबह अभी तो आयेगी (२)
इन काली सदियों के सर से अब रात का आंचल ढलकेगा
अब दुःख के बादल पिघलेंगे अब सुख का सागर छलकेगा
अब अम्बर झूम के नाचेगा अब धरती नगमे गायेगी
वो सुबह अभी तो आयेगी

जिस सुबह कि खातिर जुग जुग से हम सब मर मर कर जीते थे
जिस सुबह के अमृत कि बून्द में हम ज़हर के प्याले पीते थे
इन भूखे प्यासे रुहों पर अब तो करम फ़रमायेगी
वो सुबह अभी तो आयेगी

मानो कि अभी तेरे मेरे अरमानो कि किमत कुछ भि तो है
मिट्टि का भि है कुछ मोल और इन्सानो कि कीमत कुछ भि तो है
इन्सानो कि इज्जत अब झूठें सिक्कों में ना तोली जायेगी
वो सुबह अभी तो आयेगी

किस बात पर गर्व करे…..??

From: Asha Gupta < >  

किस बात पर गर्व करे…..??
लाखों करोड़ के घोटालों पर…?
85 करोड़ भूखे गरीबों पर…?
62 प्रतिशत कुपोषित इंसानों पर…?
या क़र्ज़ से मरते किसानों पर…?
किस बात पर गर्व करे…..??

जवानों की सर कटी लाशों पर…?
सरकार में बैठे अय्याशों पर….?
स्विस बैंकों के राज़ पर…?
प्रदर्शनकारियों पर होते लाठीचार्ज पर…?
किस बात पर गर्व करे……??

राज करते कुछ परिवारों पर….?
उनकी लम्बी इम्पोर्टेड कारों पर….?
रोज़ हो रहे बलात्कारों पर…?
या भारत विरोधी नारों पर…?
किस बात पर गर्व करे……??

महंगे होते आहार पर….?
अन्याय की हाहाकार पर….?
बढ़ रहे नक्सलवाद पर….?
या देश तोड़ते आतंकवाद पर….?
किस बात पर गर्व करे…….??

जवानों की खाली बंदूकों पर….?
सुरक्षा पर होती चूकों पर….?
पेंशन पर मिलते धक्कों पर…..?
या IPL के चौकों-छक्कों पर….?
किस बात पर गर्व करे……??

A Poem by Hari Om Pawar

From: Vidya Sagar Garg < >
A Poem by Sri hari Om Pawar ji
मन तो मेरा भी करता है झुमुं-नाचूं गाऊँ मैं 
आज़ादी की स्वर्ण जयंती वाले गीत सुनाऊं मैं
लेकिन सरगम वाला वातावरण कहाँ से लाऊँ मैं
मेघ-मल्हारों वाला अन्तःकरण कहाँ से लाऊँ मैं
मैं दामन में दर्द तुम्हारे अपने लेकर बैठा हूँ 
आज़ादी के टूटे-फूटे सपने लेकर बैठा हूँ
 
घाव जिन्होंने भारत माता को गहरे दे रक्खे हैं
उन लोगों को Z-सुरक्षा के पहरे दे रक्खे हैं 
 
जो भारत को बर्बादी की हद तक लाने वाले हैं 
वे ही स्वर्ण जयंती का पैगाम सुनाने वाले हैं 
आज़ादी लाने वालों का तिरस्कार तडफाता है
बलिदानी पत्थर पर थूका बार-बार तडफाता है
इन्कलाब की बलिवेदी भी जिससे गौरव पाती है
आज़ादी में उस “शेखर” को भी गाली दी जाती है 
 
इससे बढ़ कर और शर्म की बात नहीं हो सकती थी
आज़ादी के परवानो पर घात नहीं हो सकती थी
कोई बलिदानी  “शेखर” को आतंकी कह जाता है
पत्थर पर से नाम हटा कर कुर्सी पर रह जाता है 
 
राज महल के अन्दर ऐरे-गैरे तन कर बैठे हैं
बुद्धिजीवी गांधीजी के बन्दर बन कर बैठे हैं 
इसीलिए मैं अभिनन्दन के गीत नहीं गा सकता हूँ
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ 
 
गाली की भी कोई सीमा है कोई मर्यादा है
ये घटना तो देशद्रोह की परिभाषा से जादा है
मेरी आँखों में पानी है सीने में चिंगारी है 
राजनीति ने कुर्बानी के दिल पर ठोकर मारी है 
 
वोटों के लालच में शायद कोई कहीं नहीं बोला
लेकिन कोई ये न समझे कोई खून नहीं खौला
सुनकर बलिदानी बेटों का धीरज डोल गया होगा
मंगल पाण्डेय फिर शोणित की भाषा बोल गया होगा
सुनकर हिन्द-महासागर की लहरें तड़फ गयीं होंगी
शायद बिश्मिल की ग़ज़लों की बहरें तड़फ गयीं होंगी
 
नील गगन में कोई पूछल तारा टूट गया होगा
अशफाक उल्लाह की आँखों में लावा फुट गया होगा 
भारत भू पर मरने वाला टोला भी रोया होगा
इन्कलाब का रंग बसंती चोला भी रोया होगा
चुपके चुपके रोया होगा संगम तीरथ का पानी
आंसू आंसू रोई होगी धरती की चुनर धानी
एक समंदर रोई होगी भगत सिंह की कुर्बानी
क्या ये ही सुनने की खातिर फांसी झूले सेनानी
 
जहाँ मरे “आज़ाद” पार्क के पत्ते खड़क गए होंगे
कही स्वर्ग में शेखर जी के बाजू फड़क गए होंगे
शायद पल दो पल को उसकी निद्रा भाग गयी होगी
फिर पिस्तौल उठा लेने की इच्छा जाग गयी होगी 
 
मैं दिनकर की परंपरा का चारण हूँ
भूषण की शैली का लघु उदाहरण हूँ
मैं सूरज का बेटा तम के गीत नहीं गा सकता हूँ
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ 
 
महायज्ञ का नायक “शेखर” गौरव भारत भू का है  
जिसका भारत की जनता से रिश्ता आज लहू का है 
जिसके जीवन के दर्शन ने हिम्मत को परिभाषा दी 
जिसके पिस्टल की गोली ने इन्कलाब को भाषा दी 
जिसने धरा गुलामी वाली क्रांति निकेतन कर डाली 
आज़ादी के हवन कुंड में अग्नि चेतन कर डाली 
जिसकी यश गाथा भारत के घर-घर में नभ चुम्बी है 
जिसकी थोड़ी सी आयु भी कई युगों से लम्बी है 
जिसको खुनी मेहँदी से भी देह रचाना आता था 
आज़ादी का योद्धा केवल चने चबेना खाता था 
अब तो नेता पर्वत, सड़के, नहरों को खा जाते हैं 
नए जिले के शिलान्यास में शहरों को खा जाते हैं ।। 
और ये चार लाइन शेखर जी की पूजा के लिए लिखीं हैं
 
स्वर्ण जयंती वाला जो ये मंदिर खड़ा हुआ होगा ।। 
“शेखर” इसकी बुनियादों के निचे गडा हुआ होगा 
आज़ादी के कारण जो गोरों से कभी लड़ी है रे 
“शेखर” की पिस्तौल किसी तीरथ से बहुत बड़ी है रे ।।
मैं साहित्य नहीं चोटों का चित्रण हूँ
आज़ादी के अवमूल्यन का वर्णन हूँ
मैं अग्निगंधा शबनम की प्रीत नहीं पा सकता हूँ
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ
 
जो भारत माता की जय के नारे गाने वाले हैं
राष्ट्रवाद की गरिमा, गौरव, ज्ञान सिखाने वाले हैं
जो नैतिकता के अवमूल्यन का गम करते रहते हैं
देश धर्म की ठेकेदारी का दम भरते रहते हैं
जो छोटी छोटी बातों पर संसद में अड़ जाते हैं
और शहीदों के मुद्दे पर सडको पर लड़ जाते हैं
 
60 (साठ) दिनों तक स्वर्ण जयंती रथ लेकर जो घूमे हैं
आज़ादी की यादों के पत्थर पूजे हैं चूमे हैं
इस घटना पर चुप बैठे हैं सब के मुंह पर ताले हैं
हम तो समझा करते थे की ये तो हिम्मत वाले हैं ।।
सच्चाई के संकल्पों की कलम सदा ही बोलेगी
वर्तमान के अपराधों को समय तुला पर तोलेगी
 
वर्ना तो साहस कर के दो टूक डांट भी सकते थे
अगर शहीदों पर थूके तो जीभ काट भी सकते थे ।।
 
जलियाँ वाला बाग़ में जो निर्दोषों का हत्यारा था
उस डायर को उधम सिंह ने लन्दन जा कर मारा था 
 
केवल सिंघासन का भाँट नहीं हूँ मैं
वृदावलियो की ही हाट नहीं हूँ मैं
मैं दर्पण हूँ दागी चेहरों को कैसे भा सकता हूँ
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ 
 
जो भारत में पेरियार को पैगम्बर दर्शाती है ।।
वातावरण विषैला कर के मन ही मन मुस्काती है
जो अतीत को तिरस्कार के चांटे देती आई है
वर्तमान को जातिवाद के कांटे देती आई है
जिसने चित्रकूट नगरी का नाम बदल कर डाल दिया
तुलसी की रामायण का सम्मान कुचल कर डाल दिया
जो कल तिलक, गोखले को गद्दार बताने वाली है
खुद को ही आज़ादी का हक़दार बताने वाली है
उससे गठबंधन जारी है .. ये कैसी लाचारी है? ।।
शायद कुर्सी और शहीदों में अब कुर्सी प्यारी है ।।
अंतिम पंक्तियाँ …. मेरा विनम्र प्रणाम उन अमर शहीदों को
जो सीने पर गोली खाने को आगे बढ़ जाते थे ।। 
भारत माता की जय कह कर फांसी पर चढ़ जाते थे 
जिन बेटों ने धरती माता पर कुर्बानी दे डाली 
आज़ादी के हवन कुंड के लिए जवानी दे डाली 
वो देवों की लोक सभा के अंग बने बैठे होंगे 
वो सतरंगे इंद्रधनुष के रंग बने बैठे होंगे ।। 
 
उन बेटों की याद भुलाने की नादानी करते हो 
इन्द्रधनुष के रंग चुराने की नादानी करते हो ।। 
दूर गगन के तारे उनके नाम दिखाई देते हैं 
उनके स्मारक भी चारो धाम दिखाई देते हैं 
जिनके कारण ये भारत आजाद दिखाई देता है 
अमर तिरंगा उन बेटों की याद दिखाई देता है 
उनका नाम जुबां पर लो तो पलकों को झपका लेना ।। 
उनकी यादों के पत्थर पर दो आंसू टपका देना ।। 
जो धरती में मस्तक बो कर चले गए 
दाग गुलामी वाला धो कर चले गए 
मैं उनकी पूजा की खातिर जीवन भर गा सकता हूँ 
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ

श्री हरी ओम पवार जी

तिरंगा (Tri-color Flag of India (Bhaarat or Aryavarta)

तिरंगा

तीन रंग मे रंगा हुआ है,मेरे देश का झन्डा,
केसरिया,सफ़ेद और हरा,मिलकर बना तिरंगा |

इस झंडे की अजब गजब,तुम्हे सुनाऊं कहानी ,
केसरिया की शान है जग मे,युगों-युगों पुरानी |

संस्कृति का दुनिया मे,जब से है आगाज़ हुआ ,
केसरिया तब से ही है,विश्व विजयी बना रहा |

शान्ति का मार्ग बुद्ध ने,सारे जग को दिखलाया ,
धवल विचारों का प्रतीक,सफ़ेद रंग कहलाया |

महावीर ने सत्य,अहिंसा,धर्म का मार्ग बताया ,
शांत रहे सम्पूर्ण विश्व,सफ़ेद धवज फहराया |

खेती से भारत ने सबको,उन्नति का मार्ग बताया ,
हरित क्रांति जग मे फैली,हरा रंग है आया |

वसुधैव कुटुंब मे कोई.कहीं रहे न भूखा ,
मानवता जन-जन मे व्यापे,नहीं बाढ़ नहीं सुखा|

अशोक महान हुआ दुनिया मे,धर्म सन्देश सुनाया ,
सावधान चौबीसों घंटे,चक्र का महत्व बताया |

नीले रंग का बना चक्र,हमको संदेशा देता ,
नील गगन से बनो विशाल,सदा प्रेरणा भरता |

तिरंगा है शान हमारी,आंच न इस पर आये ,
अध्यात्म भारत की देन,विजय धवज फहराए |

डॉ.अ.कीर्तिवर्धन
8265821800

 

सिहासन खाली करो की जनता आती है।

From Puneet < >

Source: http://www.rajivdixit.com/?p=425#comments

 

आप लोग जोक्स फॉरवर्ड करते ही हो. इसे भी इतना फॉरवर्ड करो की पूरा भारत इसे
पढ़े और एक आन्दोलन बन जाये

सदियो की ठण्डी बुझी राख सुगबुगा उठी,

मिट्टी सोने का ताज् पहन इठलाती है।

दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,

सिहासन खाली करो की जनता आती है।

 

जनता? हां, मिट्टी की अबोध् मूर्ते वही,
जाडे पाले की कसक सदा सहने वाली,
जब् अन्ग अन्ग मे लगे सांप हो चूस् रहे,

तब् भी न कभी मुह खोल दर्द कहने वाली।

लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते है,

जनता जब् कोपाकुल् हो भृकुटी चढ़ाती है,

दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,

सिहासन खाली करो की जनता आती है।

 

हुन्कारो से महलो की नीव उखड जाती,

सांसो के बल से ताज हवा मे उडता है,

जनता की रोके राह समय मे ताब् कहां?

वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुडता है।

सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,

120 कोटि हित सिहासन तैयार करो,

अभिषेक आज राजा का नही, प्रजा का है,

120 कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।

 

आरती लिये तु किसे ढुढता है मूरख,

मन्दिरो, राजप्रासदो मे, तहखानो मे,

देवता कही सडको पर मिट्टी तोड रहे,

देवता मिलेंगे खेतो मे खलिहानो मे।

फ़ावडे और हल राजदण्ड बनने को है,

धुसरता सोने से श्रृंगार सजाति है,

दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिहासन खाली करो की जनता आती है।

 

उठो जागो और जगाओ
आज एक नया तूफ़ान उठाओ

इस तूफ़ान में उडने वाले है
निरंकुश, भ्रस्टाचारी , शाषक और शासन
इनकी आँखें अंधी और कान बहरे हो चले है
ये नहीं सुनते जनता का कृन्दन

चुप ना बैठोअपना मुख खोल और विस्तारित करो अपनी वाणी
बहुत सहा है अब ना सहेंगे अब तक बहुत बह चूका पानी

एक जिम्मेदार भारतीय नागरिक बनो …. अब जागने और जगाने का वक़्त आ गया है.
अपने दोस्तों , मित्रो , पड़ोसियों , गाँव , शहर में सभी जगह इन बातों पर चर्चा
करो , ब्लॉग लिखो, SMS करो. नया सवेरा तुम्हारा इन्तेजार कर रहा है .