देवभूमि कश्मीर का अ-हिंदुकरण


From: Vinod Kumar Gupta < >

“देवभूमि कश्मीर का अहिंदुकरण”➖

▶1947 की  शरणार्थी समस्या➖

हिन्दुओं के लिये स्वर्ग कहलाने वाली देवभूमि जम्मू-कश्मीर में देश विभाजन के समय 1947 में पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर आये हिन्दू शरणार्थी जो सीमान्त क्षेत्रो में रह रहें है, को भारत के नागरिक होने के उपरान्त भी वहां की नागरिकता से 70 वर्ष बाद भी वंचित किया हुआ है। जिस कारण उनको राशन व आधार कार्ड , गैस कनेक्शन,सरकारी नौकरी,राज्य में स्थानीय चुनावों व उच्च शिक्षा,संपप्ति का क्रय-विक्रय आदि से वंचित होना पड़ रहा है। जबकि 1947 में यहां से पाकिस्तान गये हुए मुसलमानों को वापस बुला कर पुनः ससम्मान जम्मू-कश्मीर में बसाया जा रहा है। समाचारों के अनुसार विभाजन के समय लगभग 2 लाख शरणार्थी लगभग (37000 परिवार) जम्मू व घाटी में आकर बसे थे जो अब अखनूर, जम्मू, आरएस पुरा, बिश्नाह, सांबा, हीरानगर तथा कठुआ आदि के सीमान्त क्षेत्रो में रह रहें है। इनकी चार पीढियां हो चुकी है और संख्या भी अब कई लाखों में होगी फिर भी ये अभी शरणार्थी जीवन का दंश झेल रहें है। इनमें अधिकाँश दलित, अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग के हिन्दू-सिख है। ये अभी तक जम्मु-कश्मीर राज्य के नागरिक नही है , क्योंकि 1953 में राज्य सरकार ने निर्वाचन कानून में एक संशोधन किया था जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर की विधान सभा में वही मतदाता होगा जो वहां का स्थायी नागरिक होगा और स्थायी नागरिक वही होगा जो  1944  से पहले राजा हरिसिंह के राज्य की प्रजा होगी। अर्थात इस राज्य में जो 1944 के पहले से रह रहा है वही वहां का स्थायी नागरिक कहलायेगा। इसके पीछे वहां के तत्कालीन “प्रधानमंत्री”  ( उस समय वहां मुख्य मंत्री नहीं होता था) शेख अब्दुल्ला की हिन्दू विरोधी मानसिकता थी क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि इन हिंदू शरणार्थियों को यहां बसाया जायें। जबकि 1948 में मध्य एशिया से आये मुस्लिम समुदाय को वहां बसाया गया और उन्हें नागरिकता भी दी गयी। “पश्चिमी पाकिस्तान रिफ्यूजी संघर्ष समिति” के पदाधिकारी  निरंतर भारत सरकार से अपनी समस्याओं के लिए चक्कर काटते रहें है फिर भी अभी तक कोई समाधान नही हो पा रहा है। लगभग ढाई वर्ष पूर्व समिति के अध्यक्ष श्री लब्बा राम गांधी को प्रधानमंत्री मोदी , गृहमंत्री राजनाथ सिंह व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह आदि ने आश्वासन दिया था कि इनकी समस्याओं का शीघ्र हल निकाला जायेगा, पर अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ है। विश्व मे नागरिको के  मुलभूत मौलिक मानवीय अधिकारों के हनन की संभवतः यह एकमात्र त्रासदी हो।

▶”देवभूमि कश्मीर का अहिंदुकरण”➖

वर्ष 1990 में 19 जनवरी की वह काली भयानक रात वहां के हिन्दुओं के लिए मौत का मंजर बन गयी थी। वहां की मस्जिदों से ऐलान हो रहा था कि हिंदुओं “कश्मीर छोडो” । उनके घरों को लूटा जा रहा था, जलाया जा रहा था ,उनकी बहन-बेटियों के बलात्कार हो रहे थे, प्रतिरोध करने पर कत्ल किये जा रहें थे। मुग़ल काल की बर्बरता का इतिहास दोहराया जा रहा था। देश की प्रजा कश्मीरी हिन्दुओ को अपनी ही मातृभूमि (कश्मीर) में इन धर्मांधों की घिनौनी जिहादी मानसिकता का शिकार बनाया जा रहा था। उस समय सौ करोड़ हिन्दुओं का देश व लाखों की पराक्रमी सेना अपने ही बंधुओं को काल के ग्रास से बचाने में असमर्थ हो रही थी ।भारतीय संविधान ने भी अपने नागरिकों की सुरक्षा का दायित्व नहीं निभाया , क्यों..? क्या उनका स्वतंत्रता , समानता और स्वाभिमान से जीने का मौलिक व संवैधानिक अधिकार नही ? क्या मुस्लिम वोटों से सत्ता की चाहत ने तत्कालीन शासको को अंधा व बहरा कर दिया था कि जो उन्हें कश्मीरी हिन्दुओं का बहता लहू दिखाई नहीं दिया और न ही रोते-बिलखते निर्दोषो व मासूमों की चीत्कार सुनाई दी ? परिणाम सबके सामने है सैकड़ो-हज़ारों का धर्म के नाम पर रक्त बहा , लगभग 5 लाख हिन्दुओं को वहां से पलायन करना पड़ा और ये लुटे-पिटे भारतीय नागरिक जगह-जगह भटकने को विवश हो गये। सरकारी व सामाजिक सहानुभूति पर आश्रित विस्थापित समाज इस आत्मग्लानि में कब तक जी सकेगा ? स्वाभिमान व अस्तित्व के लिए संघर्ष करते हुए बच्चे आज युवा हो गये जबकि युवाओं के बालो की सफेदी ने उनको बुजुर्ग बना दिया। छोटे-छोटे शिविरों में रहने वाले अनेक कश्मीरी परिवारों में जन्म दर घटने से उनके वंश ही धीरे धीरे लुप्त हो रहें है।
इस मानवीय धर्मांध त्रासदी की पिछले 27 वर्षों से यथास्थिति के  इस इतिहास पर तथाकथित “मानवाधिकारियों व धर्मनिर्पेक्षवादियों” का उदासीन रहना क्या इसके उत्तरदायी कट्टरवादी मुस्लिमो को प्रोत्साहित नहीं कर रहा है ? “निज़ामे-मुस्तफा” की स्थापना की महत्वाकांक्षा मुस्लिम समुदाय के जिहादी दर्शन का एक  विशिष्ट अध्याय है। ऐसी विकट परिस्थितियों में हिंदुओं को वहां पुनः बसा कर उनके सामान्य जीवन को सुरक्षित करने का आश्वासन कैसे दे सकते है ? यह भी सोचना होगा कि विभाजनकारी अस्थायी अनुच्छेद 370 के रहते उनको पुनः वहां बसा कर जिहादी जनुनियो के कोप का भाजन बनने देना क्या उचित होगा ? जबकि आज वहां की बीजेपी -पीडीपी गठबंधन सरकार धीरे धीरे सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा ) को हटाने की ओर बढ़ रही है और कुछ स्थानों से सुरक्षाबलो को भी हटाना आरम्भ किया जा चुका है। आज यह सोचना होगा कि कश्मीर में “हिन्दू” रहेगा का ज्वलंत प्रश्न तो है ही पर क्या कश्मीर में “भारत” रहेगा या नही ?

▶विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं की वापसी➖

आज कश्मीर के विस्थापित हिंदुओं में कश्मीरी हिन्दू या कश्मीरी पंडित की भावना से बाहर निकाल कर भारतीय हिन्दू या  “हिन्दू-हिन्दू सब एक” का संगठनात्मक भाव बनाने की भी परम आवश्यकता है। यह सत्य है कि धर्म के कारण जो भयानक पीड़ा कश्मीरी हिंदू सह रहे है उससे उनकी एक अलग पहचान बन चुकी है । परंतु अगर हम सब अपने को प्रदेश वाद से जोड़कर कोई हिमाचली, पंजाबी, बिहारी, मराठी, गुजराती, बंगाली, मद्रासी आदि में बाट कर देखने लगेंगे तो यह एक बहुत बड़ा आत्मघाती कदम होगा। अतः विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं के दर्द से द्रवित होने वाले सभी हिंदुओं के समर्थन से चलने वाले आंदोलनो को राज्यस्तरीय विभाजन से भी बचाना होगा। लेकिन यह झुठलाया नहीं जा सकता कि कश्मीरी हिंदुओं की त्रासदी हमारे लिए एक बहुत बड़ी जीवंत चुनौती है। पुरे देश में जगह जगह बनने वाली मुस्लिम बस्तियों के बढ़ने से मिनी पाकिस्तान का बनना हम सभी को कश्मीर के भयंकर संकट का अभास करा रहा है। अतः ये मुस्लिम जिहाद केवल कश्मीरी हिंदुओं का ही नहीं पुरे भारत के हिन्दुओ की आस्थाओं व अस्तित्व पर भी भारी संकट है। सभी अलग अलग राज्यों में रहने वाले हिन्दू आपस में एकजुट है तभी संगठित शक्ति प्रदर्शन से ही हम विस्थापितों की समस्या को हल कर सकते है व भविष्य में बढ़ते जिहाद को रोकने की सामर्थ जुटा सकेगें। यह भी विचार किया जा सकता है कि विस्थापित हिंदुओं का पूरे भारत पर उतना ही अधिकार है जितना अन्य किसी हिन्दू का अतः यह कहना कहा तक उचित है कि कश्मीरियों को अलग होमलैंड देना चाहिए या वे अलग होमलैंड मांग रहे है। भारत के समस्त हिंदुओं को यह सोचना होगा कि अगर वे अपने अपने प्रदेशवासी या ग्रामवासी विचार के अहम को छोड़ कर एक हिन्दुत्वादी राष्ट्रीय  विचारधारा को नहीं अपनाएंगे तो उनका संकट घटेगा नहीं उल्टा बढेंगा। क्योंकि इससे हम हिंदुओं की ही एकजुटता पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है ?

▶अतःकश्मीरी हिन्दुओं को पुनः कश्मीर में बसाने के लिये व पाकिस्तान से आये शरणार्थी हिन्दुओं को वहां के सामान्य नागरिक अधिकार दिलवाने के लिये अनेक कठोर उपाय करने होंगे।अलगाववादियों व आतंकवादियों के कश्मीर व पीओके आदि के सभी ठीकानों व प्रशिक्षण केंद्रों को नष्ट करना होगा।  बंग्ला देशी ,म्यंमार, पाकिस्तान,अफगानिस्तान आदि के  मुस्लिम घुसपैठियों व आतंकियों को कठोरता से बाहर निकालना होगा। वहां के आतंकियो के स्लीपिंग सेलो व ओवर ग्राउंड वर्कर्स को भी चिन्हित करके उनको बंदी बनाना होगा। यह भी ध्यान रहें कि जम्मू कश्मीर से जब तक अनुच्छेद 370 नहीं हटाया जाता तब तक वहां से अफस्पा कानून व सेना को भी नहीं हटाया जाना चाहिये। इसके साथ साथ केंद्र सरकार को  जम्मू-कश्मीर में प्रस्तावित सैनिक कालोनी व विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं के लिए कालोनियों के निर्माण की योजनाओं को अविलंब आरम्भ करना चाहिये । साथ ही कश्मीर को भारत की मुख्य धारा में लाने के लिए व उसको अहिंदुकरण होने से बचाने के लिये संविधान का विवादित आत्मघाती अनुच्छेद 370 को हटाने की केंद्र व राज्य सरकारों सहित सभी भारतीयों की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिये।

विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक एवं लेखक)
ग़ाज़ियाबाद

नोट: यह लेख पूर्व में 5.5.2017 में भी प्रेषित किया गया था… पुनः प्रेषित कर रहा हूं… आज भी प्रसांगिक है।
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Author: Vyasji

I am a senior retired engineer in USA with a couple of masters degrees. Born and raised in the Vedic family tradition in Bhaarat. Thanks to the Vedic gurus and Sri Krishna, I am a humble Vedic preacher, and when necessary I serve as a Purohit for Vedic dharma ceremonies.

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