जिन्नाह के जिन्न से नही, जिन्नाहवादी सोच से बचो


From: Vinod Kumar Gupta < >

~जिन्नाह के जिन्न से नही जिन्नाहवादी सोच से बचो〰

◾एक बार नेहरू जी ने कहा था कि  “एक क्या एक हज़ार जिन्नाह भी पाकिस्तान नही बना सकते”। तब जिन्नाह बोले थे कि  “पाकिस्तान का जन्म तो तभी हो गया था जब पहले हिन्दू का धर्मपरिवर्तन करके उसे मुसलमान बना दिया गया था “। अतः उनकी भविष्य में भारत को मुगलिस्तान बनाने की सोच व दूरदर्शिता स्पष्ट थी। जबकि हमारे नेतागण धर्मनिरपेक्षता की ओढ़नी में इस्लामिक मानसिकता से दबते हुए व परिस्थितियों से समझौता करते हुए आत्मसमर्पण करते आ रहे हैं। हम कभी मुस्लिम तुष्टिकरण की योजनाएं बनाकर उनपर भारी राजकोष व्यय करते हैं तो कभी उन्हें और अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए मुस्लिम सशक्तिकरण का अभियान चला कर आत्मसंतुष्ट होना चाहते हैं ।
◾परंतु अज्ञानवश इस सबसे हम आत्मघात की ओर बढ़ रहें हैं। इसी का परिणाम है कि जिन्नाह जैसे देशद्रोही को अपना आदर्श मानने वाला समाज उनकी विभाजनकारी नीतियों को आगे बढ़ाते हुए आज उसी राष्ट्र को जला रहा हैं जहां की माटी में वे सब पले-बढ़े हुए हैं। जिसके अन्न-जल ने उन्हें सींच कर भारत जैसे एक प्रमुख राष्ट्र का सम्मानित नागरिक बनाया है । क्या ऐसे समाज को भारत भूमि के लिये उसकी संस्कृति व आदर्शों के प्रति कोई सम्मान नहीं होना चाहिये ?
◾इस सत्य को मानना अनुचित नही कि मोहम्मद अली जिन्नाह ही पाकिस्तान के जनक कहलाये जाते है। उन्होंने मुस्लिम लीग के 22 मार्च 1940 के लाहौर अधिवेशन में द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत प्रतिपादित किया। उन्होंने कहा भारत में “हिन्दू-मुसलमान दो जातियां नही अपितु दो राष्ट्र है, क्योंकि दोनों का खान-पान , रीति-रिवाज व रहन-सहन बिल्कुल भिन्न है। दोनों न सहभोज कर सकते है और न ही दोनों सहविवाह कर सकते। यहां तक कि हिन्दू का महापुरुष मुसलमान के लिए खलनायक है व मुसलमान का महापुरुष हिन्दू का खलनायक है। इसलिए भारत को हिन्दू – भारत  व  मुस्लिम – भारत के रूप में विभाजित कर देना चाहिये “। 23 मार्च 1940 को इसी अधिवेशन में पाकिस्तान संबंधित प्रस्ताव पारित कर दिया गया, जिसके तुरंत बाद मुस्लिम  लीग के नेताओं ने जहां तहां भी उनसे हो सका हिन्दुओं व सिक्खों की हत्या, लूटमार व बलात्कार आदि आरम्भ कर दिये । ढाका, मुंबई व अहमदाबाद आदि में तो बल्वे अधिक भयंकर हुए थे।
◾इतिहास साक्षी है कि जिद्दी जिन्नाह को मनाने के लिए महात्मा गांधी सन 1944 में दिनांक  9 से 27 सितंबर तक निरन्तर 19 दिन जिन्नाह की कोठी पर गए थे और उनको “कायदे-आजम” ( सबसे बड़ा आदमी ) कहते हुए संबोधित करके गांधी जी ने मुस्लिम-तुष्टीकरण की सारी सीमाएं लांघ दी थी। परंतु जिन्नाह अपनी जिद्द पर अड़े रहे। यह सत्य है कि पूर्व में जिन्नाह कट्टरपंथी नही थे परंतु सत्ता पाने की होड़ने और नेहरू आदि के व्यवहारों ने उन्हें मुस्लिम लीग का नेता बना कर स्वतः इस्लामिक कट्टरता के मार्ग पर चलने को विवश कर दिया था।
◾यह भी अवश्य स्मरण होना चाहिये कि  16 अगस्त 1946 को जिन्नाह ने मुस्लिम लीग द्वारा सीधी कार्यवाही  ( डायरेक्ट एक्शन ) का आदेश देकर हिन्दू व सिक्खों को मारने का आह्वान किया था। जिसके कारण बंगाल की मुस्लिम लीग सरकार ने कलकत्ता की सड़कों को हिंदुओं के रक्त से लाल कर दिया। नोआखाली  में तो हिंदुओं की हज़ारों महिलाओं व लड़कियों का बलात्कार व अपहरण हुआ था। अखंड भारत के पश्चिमी पंजाब में हिन्दू व सिक्खों के लहू की नदियां बही थी। परिणामस्वरूप इन भयावह हत्याकांडों ने देश को एक खतरनाक स्थिति मे पहुँचाते हुए दर्दनाक मोड़ देने से भारत को विभाजन की त्रासदी झेलनी पड़ी ।
◾क्या किसी ने यह नही सोचा कि 1947 में भारत विभाजन की भूमिका के उत्तरदायी जिन्नाह व गाँधी एवं नेहरू के अड़ियल रुख के कारण हुए विभाजन की दुःखद त्रासदी में लगभग 2.5 करोड़ लोग बेघर हुए ,  10-15 लाख निर्दोष मारे गए व लगभग हज़ारों अबलाओं का बलात्कार हुआ और हज़ारों लोगों को अपना धर्म त्यागने का पाप झेलना पड़ा। यह केवल भारत के इतिहास की नही बल्कि मानव इतिहास को कलंकित करने वाली एक बड़ी दुर्घटना घटी थी। कायदे आजम कहलाने वाले जिन्नाह की ही योजना थी कि पाकिस्तान बनने के डेढ़ माह बाद ही कश्मीर के मीरपुर, मुजफ्फराबाद आदि बीसियों शहरों और गावों में  (जो अब पाक अधिकृत  कश्मीर में हैं ) हिंदुओं का नरसंहार करवाया गया। उस समय जिन्नाह ही पाकिस्तान के गवर्नर जनरल थे ।
◾धर्म के नाम यह सब क्यों हुआ और आगे भी होता जा रहा है क्योंकि हमको अपने हिन्दू धर्म की तेजस्विता का ज्ञान ही नही हैं और न ही हमारा कोई नेता इतना सक्षम है कि वह शुद्ध रूप से संविधान के अनुसार धर्मनिरपेक्षता का पालन कर सकें और भोली-भाले राष्ट्रवादियों की अस्मिता की रक्षा कर सकें। वर्षो पूर्व जब आडवाणी जी ने पाकिस्तान जाकर जिन्नाह को धर्मनिरपेक्ष कहा और जसवंत सिंह ने एक पुस्तक लिखकर जिन्नाह का पक्ष रखा तो संघ परिवार सहित भाजपा ने उन्हें शीर्ष नेतृत्व से अलग-थलग कर दिया था। ये दोनों नेता आज तक उस राष्ट्रीय अपमानजनक कृत्य का परिणाम भुगत रहे हैं।
◾यह अत्यंत दुःखद है कि देश में समान नागरिक सहिंता , अनुच्छेद 370 व 35 (ए) , विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं, बांग्ला देशी एवं रोहिंग्या मुसलमान घुसपैठियों व राम जन्मभूमि मंदिर की वर्षो पुरानी राष्ट्रीय समस्याओं पर सकारात्मक जागरण अभियान की प्राथमिक आवश्यकता के स्थान पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय में जिन्नाह के चित्र को लेकर विवाद  70 वर्ष बाद अब क्यों उछाला जा रहा है ? ◾भविष्य में राजनीति क्या रूप लें, अभी कहना शीघ्रता होगी क्योंकि जिन्नाहवादी पाकिस्तानी सोच राष्ट्रवादियों द्वारा मुसलमानों को अतिरिक्त लाभान्वित करवा के उनको और अधिक शक्तिशाली बनाने के लिये अपने एजेंडे पर कार्य कर रही हैं। हमारे तथाकथित राष्ट्रवादी नेता जब सत्ता से बाहर होते हैं तो सच्चर कमेटी व अल्पसंख्यक आयोग व मंत्रालय द्वारा मुसलमानों को मालामाल करने की योजनाओं का यथा संभव विरोध करने से नही चूकते और जब स्वयं सत्ता में हैं तो मुस्लिम सशक्तिकरण के लिए कोई भी मार्ग छोड़ना नही चाहते चाहे उसमें राष्ट्रवादियों को प्रताड़ना ही क्यों न झेलनी पड़ें ?
◾राजमद में ये नेता अपने सारे वायदे और सिद्धान्तों को भुला कर भविष्य में पुनः सत्ता पाने के लिये अल्पसंख्यकवाद की चपेट में आ चुके हैं। जबकि इतिहास साक्षी हैं की अल्पसंख्यकवाद का वास्तविक लाभ उठाने वाला मुस्लिम सम्प्रदाय राष्ट्रवादियों का पक्ष नही लेता। इस प्रकार की मुस्लिम उन्मुखी राजनीति  समस्त राष्ट्रवादियों व संघ परिवारों से संबंधित देशभक्तों को भी आहत कर रही हैं। फिर भी अधिकांश देशभक्त  इसको भाजपा की कूटनीतिज्ञता समझने को विवश हो रहें हैं।
◾लेकिन चाटुकारों से घिरा हुआ शीर्ष नेतृत्व जब चुनाव जीतने को ही सर्वोच्च लक्ष्य मानने लगेगा तो राजनीति में सिद्धान्तहीनता की जड़ें और अधिक गहरी होती रहेगी। नेताओं को यह ध्यान🏼रखना चाहिए कि कार्यकर्ता समाज का सेवक होता है न कि किसी नेता का दास और संगठन को नेताओं से अधिक कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है। क्योंकि किसी भी संगठन की शक्ति उसके कार्यकर्ताओं से ही निर्मित होती है , इसलिए उनकी इच्छाओं का सम्मान व सेवाओं का मूल्यांकन होना ही चाहिये।
◾अतः आज आवश्यकता यह है कि जिन्नाह के जिन्न से नही जिन्नाहवादी पाकिस्तानी / जिहादी सोच से बचना होगा इसलिए राष्ट्रवादी नेताओं को समझना होगा कि सफल राजनीति के लिये राष्ट्रवादी समाज व कार्यकर्ताओं को रबर के समान इतना न खींचों की वह टूट कर बिखर जाये।

विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक व लेखक)
गाज़ियाबाद

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Author: Vyasji

I am a senior retired engineer in USA with a couple of masters degrees. Born and raised in the Vedic family tradition in Bhaarat. Thanks to the Vedic gurus and Sri Krishna, I am a humble Vedic preacher, and when necessary I serve as a Purohit for Vedic dharma ceremonies.

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