शुर्णपंखा और इस्लाम ।


From: Pramod Agrawal < >

शुर्णपंखा और इस्लाम ।

 

रामायण में सभी राक्षसों का वध हुआ था। लेकिन शूर्पनखा का वध नहीं हुआ था .उसकी नाक और कान काट कर छोड़ दिया गया था । वह कपडे से अपने चेहरे को छुपा कर रहती थी ।

 

रावण के मर जाने के बाद वह अपने पति के साथ शुक्राचार्य के पास गयी और जंगल में उनके आश्रम में रहने लगी ।

राक्षसों का वंश ख़त्म न हो इसलिए, शुक्राचार्य ने शिव जी की आराधना की ।

 

शिव जी ने अपना स्वरुप शिवलिंग शुक्राचार्य को दे कर कहा की जिस दिन कोई “वैष्णव” इस पर गंगा जल चढ़ा देगा उस दिन राक्षसों का नाश हो जायेगा । उस आत्म लिंग को शुक्राचार्य ने वैष्णव मतलब हिन्दुओं से दूर रेगिस्तान में स्थापित किया जो आज अरब में “मक्का मदीना” में है । शूर्पनखा जो उस समय चेहरा ढक कर रखती थी वो परंपरा को उसके बच्चो ने पूरा निभाया ओर आज भी मुस्लिम औरतें चेहरा ढकी रहती हैं।

 

शूर्पनखा के वंशज आज मुसलमान कहलाते हैं । क्यूँकी शुक्राचार्य ने इनको जीवन दान दिया , इस लिए ये शुक्रवार को विशेष महत्त्व देते हैं ।

 

पूरी जानकारी तथ्यों पर आधारित सच है।⛳

 

जानिए इस्लाम कैसे पैदा हुआ..

 

असल में इस्लाम कोई धर्म नहीं है .एक मजहब है.. दिनचर्या है.. मजहब का मतलब अपने कबीलों के गिरोह को बढ़ाना..

यह बात सब जानते है की मोहम्मदी मूलरूप से अरब वासी है ।

 

अरब देशो में सिर्फ रेगिस्तान पाया जाता है.वहां जंगल नहीं है, पेड़ नहीं है. इसीलिए वहां मरने के बाद जलाने के लिए लकड़ी न होने के कारण ज़मीन में दफ़न कर दिया जाता था.

 

रेगिस्तान में हरीयाली नहीं होती.. ऐसे में रेगिस्तान में हरा चटक रंग देखकर इंसान चला आता की यहाँ जीवन है ओर ये हरा रंग सूचक का काम करता था.

 

अरब देशो में लोग रेगिस्तान में तेज़ धुप में सफ़र करते थे, इसीलिए वहां के लोग सिर को ढकने के लिए टोपी पहनते थे।

जिससे की लोग बीमार न पड़े.

 

अब रेगिस्तान में खेत तो नहीं थे, न फल, तो खाने के लिए वहा अनाज नहीं होता था. इसीलिए वहा के लोग जानवरों को काट कर खाते थे. और अपनी भूख मिटाने के लिए इसे क़ुर्बानी का नाम दिया गया।

 

रेगिस्तान में पानी की बहुत कमी रहती थी, इसीलिए मुत्रमार्ग साफ करने में पानी बर्बाद न हो जाये इसीलिए लोग खतना कराते थे।

 

सब लोग एक ही कबिले के खानाबदोश होते थे इसलिए आपस में भाई बहन ही निकाह कर लेते थे।

 

रेगिस्तान में मिट्टी मिलती नहीं थी मुर्ती बनाने को इसलिए मुर्ती पुजा नहीं करते थे| खानाबदोश थे , एक जगह से दुसरी जगह जाना पड़ता था इसलिए कम बर्तन रखते थे और एक थाली नें पांच लोग खाते थे|

 

कबीले की अधिक से अधिक संख्या बढ़े इसलिए हर एक को चार बीवी रखने की इज़ाजत दी जाती थी

..

अब समझे इस्लाम कोई धर्म नहीं मात्र एक कबीला है.. और इसके नियम असल में इनकी दिनचर्या है ।

 

नोट : पोस्ट पढ़के इसके बारे में सोचो।

 

#इस्लाम_की_सच्चाई

 

अगर हर हिँदू माँ-बाप अपने बच्चों को बताए कि अजमेर दरगाह वाले ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने किस तरह इस्लाम कबूल ना करने पर पृथ्वीराज चौहान की पत्नी संयोगिता को मुस्लिम सैनिकों के बीच बलात्कार करने के लिए निर्वस्त्र करके फेँक दिया था ।

 

और फिर किस तरह पृथ्वीराज चौहान की वीर पुत्रियों ने आत्मघाती बनकर मोइनुद्दीन चिश्ती को 72 हूरों के पास भेजा था।

तो शायद ही कोई हिँदू उस मुल्ले की कब्र पर माथा पटकने जाए .

 

“अजमेर के ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती को ९० लाख हिंदुओं को इस्लाम में लाने का गौरव प्राप्त है ।

मोइनुद्दीन चिश्ती ने ही मोहम्मद गोरी को भारत लूटने के लिए उकसाया और आमंत्रित किया था…

 

(सन्दर्भ – उर्दू अखबार “पाक एक्सप्रेस, न्यूयार्क १४ मई २०१२).

 

 

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Author: Vyasji

I am a senior retired engineer in USA with a couple of masters degrees. Born and raised in the Vedic family tradition in Bhaarat. Thanks to the Vedic gurus and Sri Krishna, I am a humble Vedic preacher, and when necessary I serve as a Purohit for Vedic dharma ceremonies.

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