अल्पसंख्यकवाद ” के दुष्परिणाम


From: Vindo Kumar Gupta < >

“अल्पसंख्यकवाद ” के दुष्परिणाम…

▶इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि अल्पसंख्यकवाद  की  राजनीति ने हमारे राष्ट्र को अभी भी दिग्भर्मित किया हुआ है। जबकि यह स्पष्ट होता आ रहा है कि ‘अल्पसंख्यकवाद’ की अवधारणा  अलगाववाद व आतंकवाद की अप्रत्यक्ष पोषक होने से राष्ट्र की अखण्डता व साम्प्रदायिक सौहार्द के लिये एक बड़ी चुनौती है। सन 1947 में लाखों निर्दोषो और मासूमों की लाशों के ढेर पर हुआ अखंड भारत का विभाजन और पाकिस्तान का निर्माण इसी साम्प्रदायिक कटुता का प्रमाण था और है ।
▶आज परिस्थिति वश यह कहना भी गलत नही कि “अल्पसंख्यकवाद” से देश समाजिक, साम्प्रदायिक व मानसिक स्तर पर भी विभाजित होता जा रहा है। विश्व के किसी भी देश में अल्पसंख्यको को बहुसंख्यकों से अधिक अधिकार प्राप्त नही होते क्योंकि बहुसंख्यकों की उन्नति से ही देश का विकास संभव है न कि अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण अथवा उनके सशक्तिकरण से। अल्पसंख्यकों को सम्मान देना एक बात है लेकिन उनका तुष्टिकरण करना अर्थात उनकी अनुचित बातों को मानना और उनके कट्टरवाद को समर्थन देना बिल्कुल अव्यवहारिक व अनुचित है ।
▶क्या यह विरोधाभास हमको चेतावनी नही देता कि जब कभी बहुसंख्यक हिन्दुओं , उनकी सभ्यता और संस्कृति के विरुद्ध  एवं उनके महापुरुषों के सम्मान के विपरीत कहा जाय तो स्वीकार्य है परंतु यदि कोई प्रश्न या प्रकरण अल्पसंख्यकों की वास्तविकता से जुड़ा हो, उनके मुल्ला-मौलवियों से जुड़ा हो या उनकी विद्याओं और पैग़म्बर से संबंधित हो तो उसे सार्वजनिक जीवन की मर्यादा के विरुद्ध घोषित करके अपराधी बनाने के लिए सारे यत्न किये जाते है ?
▶हमारे देश की संविधानिक विडंबना भी यह है कि अल्पसंख्यक कहे जाने वाले मुसलमान आदि अपने धार्मिक  व नागरिक दोहरे अधिकारों से लाभान्वित होते आ रहें है , जबकि संविधान के अनुच्छेद  25  से  30  में बहुसंख्यक हिदुओं को उनके शिक्षा संबंधित धार्मिक अधिकारों से वंचित रखा हुआ है। इसप्रकार  किसी धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म आधारित अल्पसंख्यको व बहुसंख्यको में भेदभाव करना क्या सर्वथा अनुचित नही है ? ध्यान रहें कि विश्व में कही भी अल्पसंख्यकों के अनुसार कानून नहीं बनाये जाते। वहां के कानून बहुसंख्यक भूमि पुत्रो के धार्मिक रीति-रिवाज़ों व संस्कृति पर आधारित होते है । इन्ही कानूनों के अनुसार अल्पसंख्यकों को अपने रीति रिवाज़ों को अपनाते हुए वहां के मूल निवासियों के साथ मिलजुल कर रहना होता है। इसीलिये ‘अल्पसंख्यक कौन और क्यों’ पर एक बड़ी बहस आज अत्यंत आवश्यक हो गयी है।
▶दशकों से अल्पसंख्यकवाद  की राजनीति ने हमारे राष्ट्र को कर्तव्यविमुख कर दिया है । इसलिए जो कट्टरवाद के समर्थक है और अलगाववाद व आतंक को कुप्रोत्साहित करते है उन्हें दंडित करने में भी अनेक समस्यायें आ जाती है ।वर्षो से आई.एस.आई. व अन्य आतंकवादी संगठनों ने अपने स्थानीय सम्पर्को से मिल कर सारे देश में देशद्रोहियों का जाल फैला रखा है। जिसके कारण देश के अधिकांश नगरो और कस्बो में आतकियों के अड्डे मिले तो कोई आश्चर्य नहीं होगा ?
▶अल्पसंख्यकवाद की राजनीति ने केवल राजनीतिज्ञों को ही पथभ्रष्ट नहीं किया बल्कि राष्ट्र का चेतन समाज भी पथभ्रष्ट होता जा रहा है।राष्ट्रवाद व हिंदुत्व की निंदा को हम पंथ/धर्म निरपेक्षता मानने लगे है । हम बहुसंख्यक हिन्दू आत्मनिन्दा करते हुए थकते ही नहीं, एक भयानक स्थिति बन चुकी है। आज हिंदुत्व विरोध को प्रगतिशीलता और आतंकवाद के विरोध को साम्प्रदायिकता समझने की आम धारणा बन गई है। जिस बंग्लादेशी मुस्लिम आदि घुसपैठ को सर्वोच्च न्यायालय ने “राष्ट्र पर आक्रमण” माना था उसे न केवल यथावत जारी रहने दिया गया, बल्कि उसका विरोध करने वालों को सांप्रदायिक माना जाने लगा। वही प्रवृति देश की बर्बादी के नारे लगाने वालों को देशद्रोही कहना तथाकथित बुद्धिजीवियों व सेक्युलर नेताओं को अस्वस्थ बना देती है।
▶इसी अल्पसंख्यकवाद का दुष्परिणाम है कि प्रखर राष्ट्रवाद को हिन्दू कट्टरवाद व साम्प्रदायिक कहा जाने लगा है । अल्पसंख्यकवाद के पोषण से हमारी वसुधैवकुटुंब्कम की संस्कृति व सर्व धर्म समभाव की धारणा निरंतर आहत हो रही है। निसंदेह हमारी संस्कृति किसी से बदला लेने या उस पर आक्रामक होने की नहीं है, फिर भी हम आतंकवादियों और कट्टरपंथियों को संरक्षण देने वालों को देश का शुभचिंतक नहीं मान सकते ? आक्रान्ताओं की जिहादी संस्कृति जो मानवता विरोधी है और विश्व शांति के लिए एक भयंकर चुनौती है , समाज में अलगाववाद का विष ही घोल रही है। अतः राष्ट्रीय सुरक्षा व विकास के लिए अति अल्पसंख्यकवाद से सावधान रहना चाहिये। यह सत्य है कि भूमि पुत्र बहुसंख्यकों की अवहेलना करके कोई राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता।
▶यह विचित्र है कि आज इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में समर्पित राजनीतिज्ञ , सामाजिक व धार्मिक नेता  अलग-थलग पड़ते जा रहें है। आधुनिकता की चकाचौंध ने सभी को राष्ट्रनीति के स्थान पर राजनीति के चक्रव्यूह में फंसा दिया है । जिससे अल्पसंख्यकवाद की पोषित राजनीति ने राष्ट्र को अपने मानवीय मूल्यों, नैतिक आधारो, धर्म व संस्कृति आदि को ही धीरे धीरे तिलांजलि देने को विवश कर दिया है।
मुस्लिम पोषित राजनीति का पर्याय बन चुका “अल्पसंख्यकवाद ” आज अपनी एकजुट वोटो के सहारे भारत ही नही सारे संसार में जहां जहां लोकतंत्र है वहां वहां अपनी संख्या के बल पर पर प्रभावी होता जा रहा है। आज जब विश्व मे इन जिहादियों के वीभत्स अत्याचारो से सारी मानवता त्राहि-त्राहि कर रही है,  फिर भी विश्व के अनेक शक्तिशाली नेता धैर्य रखो और देखते रहो की नीतियों पर चलना चाहते है।
▶अनेक गणमान्य लोगों का मानना है कि इन कट्टरपंथी मुसलमानों का सर्वमान्य एक ही लक्ष्य है  “दारुल-इस्लाम” …अतः इनकी कितनी ही उदार सहायता करते रहो फिर भी इनकी अनन्त मांगे कभी पूरी नहीं होंगी। इनकी स्पष्ट मान्यता है कि जब तक इस्लाम है तब तक जिहाद रुकेगा नही और जो विश्व के इस्लामीकरण से कम में संतुष्ट होने वाला नहीं है। इसके लिए बगदादी और जाकिर नाईक जैसे इस्लाम के हज़ारों प्रवर्तक वर्षो से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से सक्रिय है।
▶इसलिये तटस्थ रहकर विचार करना होगा कि  इस्लामिक  जिहाद से त्रस्त भारत सहित विश्व के अनेक देश इस नफरत व घृणास्पद वैचारिक जड़ता को मिटाने के लिए मुस्लिम कट्टरपंथियों की कितनी ही आर्थिक व समाजिक सहायता करते रहें , फिर भी क्या वे उस राष्ट्र की मुख्य धारा से कभी जुड़ेंगे ? साथ ही इन कट्टरपंथी जिहादियों को सुरक्षा एजेंसियों के भरोसे भी नियंत्रित नहीं किया जा सकता । अतः मानवता की रक्षा के लिए अल्पसंख्यक मुसलमानों का अतिरिक्त पोषण बंद करना होगा और इनकी शिक्षाओ व दर्शन में आवश्यक संशोधन करवाने होंगे ।

विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक एवं लेखक)
गाज़ियाबाद

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Also read an article at: https://skanda987.wordpress.com/2015/02/16/defects-of-democratic-constitutions/

 

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Author: Vyasji

I am a senior retired engineer in USA with a couple of masters degrees. Born and raised in the Vedic family tradition in Bhaarat. Thanks to the Vedic gurus and Sri Krishna, I am a humble Vedic preacher, and when necessary I serve as a Purohit for Vedic dharma ceremonies.

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