A Poem हवा लगी पश्चिम की


A Poem हवा लगी पश्चिम की

By Vinod Gupta < >

 

हवा लगी पश्चिम की , सारे कुप्पा बनकर गए फूल।

ईस्वी सन तो याद रहा , पर अपना संवत्सर गए भूल ।।

 

चारों तरफ नए साल का , ऐसा मचा है हो-हल्ला ।

बेगानी शादी में नाचे , जैसे कोई दीवाना अब्दुल्ला ।।

 

धरती ठिठुर रही सर्दी से , घना कुहासा छाया है ।

कैसा ये नववर्ष है , जिससे सूरज भी शरमाया है ।।

 

सूनी है पेड़ों की डालें , फूल नहीं हैं उपवन में ।

पर्वत ढके बर्फ से सारे , रंग कहां है जीवन में ।।

 

बाट जोह रही सारी प्रकृति , आतुरता से फागुन का ।

जैसे रस्ता देख रही हो , सजनी अपने साजन का ।।

 

अभी ना उल्लासित हो इतने , आई अभी बहार नहीं ।

हम अपना नववर्ष मनाएंगे , न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं ।।

 

लिए बहारें आँचल में , जब चैत्र प्रतिपदा आएगी ।

फूलों का श्रृंगार करके , धरती दुल्हन बन जाएगी ।।

 

मौसम बड़ा सुहाना होगा , दिल सबके खिल जाएँगे ।

झूमेंगी फसलें खेतों में , हम गीत खुशी के गाएँगे ।।

 

उठो खुद को पहचानो , यूँ कबतक सोते रहोगे तुम ।

चिन्ह गुलामी के कंधों पर , कबतक ढोते रहोगे तुम ।।

 

अपनी समृद्ध परंपराओं का , आओ मिलकर मान बढ़ाएंगे ।

आर्यवृत के वासी हैं हम , अब अपना नववर्ष मनाएंगे ।।

 

💐वंदे मातरम💐

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Author: Vyasji

I am a senior retired engineer in USA with a couple of masters degrees. Born and raised in the Vedic family tradition in Bhaarat. Thanks to the Vedic gurus and Sri Krishna, I am a humble Vedic preacher, and when necessary I serve as a Purohit for Vedic dharma ceremonies.

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