Poem: । कोलाहल है गद्दारों का ।


From: Capt. S B Tyagi < >

Poem: । कोलाहल है गद्दारों का ।

 

घाटी मे कोलाहल है, कोलाहल है गद्दारों का ।
मौसम बना हुआ है देखो आतंकी त्यौहारों का ।
मौत हुई  है आतंकी  की  लाखों चेहरे रोए हैं ।
हम तो केवल दाल टमाटर के भावों मे खोए हैं ।
आतंकी का एक जनाजा मानो कोई जलसा है ।
लाखों लोग उमड़ आए हैं जैसे कोई फरिश्ता है ।
सेना पे पथराव किया है अफ़जल के दामादों ने ।
फिर से थाने फूँक दिए हैं धरती के जल्लादों ने ।
सीधा मतलब साथ निभाने वाले भी आतंकी है ।
इन  सबकी  वजह से पूरी घाटी ही आतंकित है ।
दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को ।
चौराहों  पे गोली  मारो साठ साल के पापों को ।
सौ सौ बार नमन् सेना को डटी रही है घाटी मे ।
आतंकी को मिला रही है काट काट के माटी मे ।
सेना को अब आतंको की छाती पे चढ़ जाने दो ।
साथ निभाने वालों पे भी अब गोली बरसाने दो ।
एक बार अब श्वेत बर्फ पे लाल रंग चढ़ जाने दो ।
लाश बिछा दो गद्दारों की सेना को बढ़ जाने दो ।
एक परीक्षण नये बमों का गद्दारों पे कर डालो ।
दहशतगर्दों के सीने मे तुम भी दहशत भर डालो ।
भूलो गिनती गद्दारों की लाश बिछाना शुरू करो ।
वंदे मातरम् भारत माँ की जय तराने शुरू करो ।
देशप्रेमियों की सैनिकों पूरी मन्नत कर डालो ।
नर्क भेज के गद्दारों को भूमि जन्नत कर डालो ।

 

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Author: Vyasji

I am a senior retired engineer in USA with a couple of masters degrees. Born and raised in the Vedic family tradition in Bhaarat. Thanks to the Vedic gurus and Sri Krishna, I am a humble Vedic preacher, and when necessary I serve as a Purohit for Vedic dharma ceremonies.

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