A poem – ईंट लावुं छुं भींत बाधशुं ने ?


ईंट लावुं छुं भींत बाधशुं ने ?

ईंट लावुं छुं, भींत बाधशुं ने ?

बीजो लावुं छु, बगीचो करशुं ने ?

संख्या छे, तो संप करशुं ने ?

दुश्मन छे, तेने हरावी देशुं ने ?

मुद्दो कहुं छु , गीतो लखशुं ने ?

गीता तो छे, तो ते गाशुं ने ?

धर्म जाणीने धर्मी बनशुं ने ?

माबेन वहु बेटीओनुं रक्षण तो करशुं ने ?

गांधी जे न करी शक्यो ते सरदार थई करशुं ने ?

एक नरेंद्र छे, तो हजार नरेन्द्रो करशुं ने ?

लांच मागे तेने लात देशुं ने ?

गन लावुं छुं , गोळीओ छोडशुं ने ?

असुरो छे, तेने फूंकी देशुं ने ?

जेणे लाज लिधी, तेनी जान लेशुं ने ?

देश आपणो छे, तो रक्षण करशुं ने ?

मन्दीर तोडे तेना मोढां तोडशुं ने ?

रामदेव छे तो रामभक्त बनशुं ने ?

संप-मतना एक झटाके रामराज करशुं ने ?

स्वीसमांथी देशी पैसा देशमां तो लावशुं ने ?

खोटा छापां बंध करी सत्य समाचार देशुं ने ?

दाळ चोखा छे, तो कांकरा काढशुं ने ?

भारत वेदिक देशमांथी कुरान बाईबल काढशुं ने ?

वेद विश्वनो छे, तो धर्म रक्षण करशुं ने ?

असुरोनो नाश करी हरि कीर्तन करशुं ने ?

‘Skanda’

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Author: Vyasji

I am a senior retired engineer in USA with a couple of masters degrees. Born and raised in the Vedic family tradition in Bhaarat. Thanks to the Vedic gurus and Sri Krishna, I am a humble Vedic preacher, and when necessary I serve as a Purohit for Vedic dharma ceremonies.

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