From: Vishwapriya Vedanuragi < >
ओ३म् इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्य: स सुपर्णो गरुत्मान् |
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहु: ||
- ऋग्वेद १/१६४/४६ || ऋषि = दीर्घतमा, देवता=सूर्य छन्द: =निचृति्त्रष्टुप्,
- अथर्ववेद ९/१०/२८ || ऋषि = ब्रह्मा, देवता=गौ:, विराट, अध्यात्मम्, छन्द: =त्रिष्टुप्
अन्वय: –
इन्द्रं मित्रं वरुणम् अग्निम् आहु: | अथ उ स: दिव्य: सुपर्ण: गरुत्मान् |
एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति, अग्निं यमं मातरिश्वानम् आहु: ||
अन्वयार्थ:-
जिस सत्ता की ओर साधारण लोगों का ध्यान नहीं है, उस सत्ता को ही
विप्रा: = अपने को विशेषरूप से ज्ञान से परिपूर्ण करने वाले (वि+प्रा) लोग
एकं सत् = उस अद्वितीय (पूर्ण स्वतंत्र) सत्ता को ही
बहुधा = भिन्न-भिन्न नामों से
वदन्ति = कहते हैं
इन्द्रं= उस सत्ता को ही ‘परमैश्वर्यशाली’
मित्रं = सबके प्रति स्नेहमय
वरुणम् = श्रेष्ठ
अग्निम् = सबसे उग्र स्थान में स्थित (अग्रणी)
आहु:= कहते हैं |
अथ उ = और निश्चय से
स:= वे प्रभु ही, वह सत्ता ही
दिव्य:= सब ज्योतिर्मय पदार्थों में दीप्त होनेवाले हैं
सुपर्ण:= पालनादि उत्तम कर्म करने वाले हैं
गरुत्मान् = ब्रह्माण्ड शकट का महान् भार उठाने वाले हैं| उस अद्वितीय सत्ता को ही
अग्निं = आगे ले चलने वाला
यमं = सर्वनियन्ता , सब का नियमन करने वाला
मातरिश्वानम् = अंतरिक्ष में सर्वत्र व्याप्त (मातरि अन्तरिक्षे श्वयति)
आहु: = कहते हैं ||
इस मंत्र का देवता “सूर्य” है, अर्थात् जो सब जगत् का उत्पादक है, प्रेरक है एवं स्वयं सदा प्रकाशमान हुआ-हुआ अन्य सबको प्रकाशित करने वाला है उसको इन्द्र, वरुण,अग्नि कहते हैं| वह दिव्य, सुपर्ण और गरुत्मान् कहलाता है | ज्ञानीजन उस एक, अद्वितीय विद्यमान तत्त्व को बहुत प्रकार से कहते हैं, बहु विध नामों से स्मरण करते हैं | वे उसको अग्नि,यम और मातरिश्वा भी कहते हैं |
ज्ञानी विद्वान् उस अद्वितीय सर्वजगत् के उत्पादक, प्रेरक एवं प्रकाशक सत्य तत्त्व –ब्रह्मतत्त्व को अनेक गुणों के कारण अनेक नामों से स्मरण करते हैं |
जैसे परमैश्वर्य वाला होने से वह इंद्र है, जगत सम्राट , ह्रदय सम्राट है |
वह सबसे स्नेह करने वाला , सबको पापों से पृथक कर हित से लगाने वाला होने से मित्र , सबसे प्रीति करने योग्य है | वह सर्व श्रेष्ठ होने से और सबके लिए वरण करने योग्य होने से वरुण है | प्रकाशस्वरुप, ज्ञानस्वरूप, सबका अग्रणी – आगे ले जाने वाला होने से अग्नि है | तेजोमय होने से दिव्य है | सुन्दर अर्थात् उत्तम रूप से पालन करने और पूर्ण करने वाला होने से वह सुपर्ण है | गुरु-महान आत्मा अर्थात् परमात्मा होने से गरुत्मान है | ज्ञानवान होने से, अग्रणी होने से वह अग्नि है | सबका नियन्ता होने से वह यम है | वह अंतरिक्ष में विचरने वाली वायु के समान सर्वव्यापक एवं सर्वधार होने से मातरिश्वा है | ऐसे ही और भी परमेश्वर के अनेक नाम हैं जिनसे उपासक उसका स्मरण कर अपने जीवन को ऊपर उठाते और आगे बढ़ाते रहते हैं |
वेदानुरागी
विश्वप्रिय