बागेश्वर धाम क्या अन्ध विश्वास फ़ैला रहा है ?
पहले अंध विश्वास क्या है वो समझना चाहिये। जो कुछ होता है जो सामान्य मनुष्य को समझने मे नहि आता है वो उसको चमत्कार दिखता है , उसको अन्य लोग अन्ध विश्वास कहते है। जो समझ गया उसके लिये वो चमत्कार नहि है और अन्ध विश्वास भी नहि है।
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अब जो चमत्कार दिखता है वो वास्तव मे चमत्कार कै कि नहि वो परखने के लिये हर प्रकारके उस्ताद आते है।
कोई गुप्त रह कर आते है।
तो कोई उस्ताद अपने परिक्षण के बाद दूसरों को समज़ा शके कि वो चमत्कार कैसे होता है तो, बादमे वो चमत्कार नहि है।
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दूसरी बात ये है कि जिसको विश्वास नहि आता है , वो स्वयं अपना अनुभव करके अपना निर्णय कह शकते है।
कोई वैज्ञानिक को संदेह है तो वो बागेश्वर धाम मे आ कर अपना अनुभव ले शकता है।
कोई पुलिश है वो भी बागेश्वर धाम मे आ कर अपना अनुभव ले शकता है।
कोई CBI, CIA, FBI, और को भी जांच करने वाला है वो भी बागेश्वर धाम मे आ कर अपना अनुभव ले शकता है।
कोई कैसा भी उस्ताद है वो भी बागेश्वर धाम मे आ कर अपना अनुभव ले शकता है।
कोई न्यायधीश है वो भी बागेश्वर धाम मे आ कर अपना अनुभव ले शकता है।
मै कहता हुं कि कुछ न्यायधीशों को स्वयम् जाना चाहिये। नहि तो उनका न्याय hear-say पर आधारित हो जायेगा।
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अगर कोई श्री धिरेन्द्र शास्त्री के उपर FIR डाले कि वो अन्ध विश्वास फ़ैला रहा हे तो क्या हो शकता है ?
न्यायधीश ने तो बागेश्वर धाम मे जा कर अनुभव कि या नहि है , तो वो कैसे न्याय करेगा ?
उनको कोई चुने हुवे वैज्ञानिक को ही सुनना पडेगा या स्वयम् बागेश्वर धाम मे जा कर अनुभव लेना होगा।
और बिना अनुभव कोई वैज्ञानिक भी अपना ज्ञान नहि दे शकता।
तो अन्तमे न्यायधीश को ये कहना ही पडेगा कि जो चमत्कार हो रहा है वो विज्ञान की समझ से बाहर है , किन्तु वेद पुराणा या सनातन धर्म ग्रन्थों की समज़ से बाहर है , जो हिन्दु धर्म गुरु बताशकते है।
तो सिद्ध होगा कि बागेश्वर धाम मे जो हो रहा है वो अन्ध श्रद्धा नहि है।
विश्व मे ऐसी बहूत चिजे है जो विज्ञान को भी समज़ मे नहि आती , किन्तु वो है ये अनुभव से मालूम होता है।
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अब कोई कहे कि जो श्री धिरेन्द्र शास्त्री कर रहे है वो कैसे शिखना ?
तो उसका उत्तर ये है की जैसे उन्हों ने गुरु शरण मे रह कर हनुमान जी की साधना करी है वैसी साधना वो करे।
हनुमानजी की कृपा होगी तो वो सफल होन्गे इस जन्म मे या अगल मनुष्य जन्म मे।
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और एक और बात भी ये है कि कोई भी मनुष्य को क्या मानना और् क्या नहि मानना वो उसकी अपनी पसन्द की बात है। इसमे किसी अन्यका जोर नहि चल शकता।
Everyone has fundamental freedom of thought. One is free to believe or not believe something. What is wrong is when one forces a belief on another without another’s agreement.
jaya shri krishna!
Suresh Vyas