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Comment by Shri Saraswat < >

कन्वर्टेडों (मुस्लिमों) का कन्फ्यूजन समझिए ….

इस्लाम से संबंधित कोई भी आर्कोलॉजिकल सर्वे (खुदाई) का सबूत आज तक ऐसा नहीं मिला है जो इस्लाम के सन् 613 ई. से पहले के होने का प्रमाण देता हो यानि मस्जिदों के नीचे मंदिर-चर्च तो बहुत मिल जाएंगे पर किसी मंदिर के नीचे मस्जिद होने का तो कोई मुस्लिम दावा तक नहीं करता ; ऐसे में यह कहना की आदम-हव्वा अब्राहमिक रिलिजन से थे, क़ुरआन से पहले भी किताबें आयी थीं, मुहम्मद के पहले भी नबी आए थे जैसी बातों का कोई एक भी जमीनी सबूत नहीं है ; सब बातें हैं बातों का क्या?

चूंकि इस्लाम महज 1,408 साल पहले का है इसलिये सभी मुसलमान या इनके पूर्वज (नबी मुहम्मद सहित) किसी न किसी समय के कन्वर्टेड ही हैं बस फर्क इतना है कि कोई पहले कन्वर्ट हुआ तो कोई बाद में .. किन्तु पहले कन्वर्ट हुए मुसलमान बाद में कन्वर्ट हुए मुसलमानों को कन्वर्टेड कहकर जलील करते हैं जो की ठीक वैसा ही है जैसा प्रोफेशनल कॉलेजों में सीनियर्स द्वारा जूनियर्स की रेगिंग। यानि कन्वर्टेड ही कन्वर्टेडों को कन्वर्टेड कह कर जलील कर रहे हैं .. या कहें की पुराना पागल ही नये पागल को पागल कह कर चिढ़ा रहा है ..

और मेरे इस दृष्टिकोण से तो पूरी मुस्लिम उम्मत ही खुद को एक खुला पागलखाना घोषित करने में लगी है।

इनके कन्फ्यूजन का आलम तो यह है की जब मैं इनसे इस्लाम की खूबियां पूछता हूं तो ये कहते हैं कि ‘कुछ तो खूबी होगी इस्लाम में तभी तो हमारे पूर्वजों ने इस्लाम कबूला।’

दक्षिण एशिया के मुस्लिम पहले तो नहीं पर आज गर्व से कहते हैं की वे कन्वर्टेड हैं पर इसी कन्वर्जन के कारण इन्हीं के आका यानि अरब के शेख जो खुद बेसिकली कन्वर्टेड हैं पर वे इन्हें अल-हिंद-मस्कीन (निम्न दर्जे के धर्मांतरित हिंदू) कहकर जलील करते हैं .. यानि कन्वर्टेड होना इज्जत है या बेइज्जती इस पर खुद आज के मुस्लिम ही एकमत नहीं हैं .. जबकि क़ुरआन कन्वर्जन को सही ठहराती है, मतलब अरब के मुसलमान या तो क़ुरआन ठीक से नहीं समझ पाए या अपने पुराने कन्वर्टेड होने और मक्का-मदीना पर कब्जे के अहंकार में वे दूसरे मुस्लिमों की बल्कि क़ुरआन की ही तौहीन कर रहे हैं और यहां के मजबूरी में बने नासमझ कन्वर्टेड हज का असिद्ध सबाब लेने और खुद को ज्यादा कट्टर मुस्लिम बताकर उनका वरदहस्त चाहने के चक्कर में उनसे खुशी-खुशी जलील भी हो रहे हैं।

इनकी भाषा उर्दू भी कन्वर्टेड ही है जो बोली तो हिंदी में जाती है पर लिखी फारसी में जाती है क्योंकि मुगलों ने हिंदी बोलना तो सीखी पर लिखना उन्होंने फारसी में ही जारी रखा जैसे आज भी सोनिया गांधी पढ़कर हिंदी तो बोलती है पर वह पढ़ती अंग्रेजी शब्दों (Hinglish) में ही है बस ऐसे ही मुस्लिम बोलते तो हिंदी हैं पर हिंदी पढ़ना नहीं जानते और ऐसे ही ये हैं तो कभी न कभी की हिंदुओं की औलादें पर आदर्श इनके फारसी लिखने वाले मुगल हैं। ऐसे तो ये ‘कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा’ वाले मिश्रण हो गये बल्कि काफिर ही हो गये क्योंकि इनके तो कई नाम, उपनाम (पंडित, चौधरी, शाह, पटेल, चौहान, गौर, भट, सोलंकी आदि) और रीतिरिवाज आज भी सनातन के ही चले आ रहे हैं और कायमखानी मुसलमानों (चौहानों के वंशज) के ज्यादातर रीतिरिवाज

तो आज भी हिंदुओं से ही लिये गये हैं यहां तक की दुल्हे को पटरे पर खड़ा कर उसकी आरती उतारना ओर उसे तिलक लगाना तक! दुल्हन की विदाई की हिंदू प्रथा आज भी इनमें जारी है वरना घर की घर में बहन से निकाह करने में एक पलंग से दूसरे पलंग पर शिफ्ट होने में कौनसी विदाई?

महज कुछ दशक पहले तक तो दक्षिण एशियाई मुसलमान अरबियों द्वारा जलील होने से बचने के लिये स्वयं को झूठे ही अरब से जोड़ते थे पर हकीकत झुठलाने में यहां होती बेइज्जती देख अब अपने आप को शान से कन्वर्टेड बोलने लगे यानि ये स्वयं ही धोबी के कुत्ते भी बने और फिर प्याज और कोड़े दोनों भी इन्होंने स्वयं ही चुने जैसे अहमदिया मुस्लिम जो मुस्लिम तो बने पर उनके हज जाने पर पाबंदी है एवं शिया मुस्लिम जो पूरी दुनिया में वहाबी सुन्नियों के हाथों मारे जा रहे हैं .. और इस्लाम छोड़ो तो इस्लाम ही इन्हें मारने दौड़ता है।

कुल मिलाकर कन्वर्टेडों को ‘न ख़ुदा मिला न विसाल-ए-सनम’ 

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