“मुसलमानों का अनावश्यक विरोध”
महोदय/महोदया,
जब यह सर्वविदित ही है कि अनेक साक्ष्यों के आधार पर अयोध्या स्थित “श्री राम जन्मभूमि मंदिर” सिद्ध हो चूका है । फिर भी इस्लामिक कट्टरपंथियों की दूषित व घ्रणित प्रवृति के कारण यह विवाद अभी सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है । अतः अभी संभावित सकारात्मक निर्णय की प्रतीक्षा करनी होगी ।
ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश का सुझाव कि “अयोध्या मंदिर विवाद को आपस में सुलझा लिया जाय” क्या स्वीकार्य होगा ? समझदार व सभ्य समाज विवादों को हल करने के शान्तिपूर्ण विकल्प ढूंढते है, परंतु जिस समाज का दर्शन पृथक संस्कृति को ही नकारता हो और अपनी घृणित सोच से उनके मान बिंदुओं को खंडित करके उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाना ही हो तो कोई क्या करें ?
इन जिहाद पिपासुओं की मानसिकता मंदिर जैसे धार्मिक विवादो पर कभी भी मध्यम मार्ग नहीं अपनायेगी ? हम कब तक मुस्लिम पोषित राजनीति से आत्मस्वाभिमान को ठेस पहुँचा कर जिहादियों के सपने पूरे करने के लिये अपने अस्तित्व को ही संकट में डालते रहेंगे ? कब तक बहुसंख्यकों की सरकार अल्पसंख्यको की अनुचित मांगों को मान कर बहुसंख्यकों का उत्पीड़न करती रहेंगी ?
याद करो जब 1985 में एक मुस्लिम तलाकशुदा बुजूर्ग महिला शाहबानो बेगम को जीवन निर्वाह के लिये धन देने को उसके पति को सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था । तब मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव में आकर कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने1986 में संसद द्वारा विधेयक पास करके कानून बनाया और मुसलमानों को अपनी तलाक़ शुदा पत्नी को खर्चा देने की बाध्यता से मुक्त कर दिया था।
अतः इस प्रकरण को ध्यान में रखते हुए केंद्र की राष्ट्रवादी सरकार को अपनी प्रबल इच्छाशक्ति से करोड़ों हिन्दुओं की आस्थाओं के प्रतीक “भगवान श्री राम” का अयोध्या में भव्य मंदिर बनवाने के लिए आवश्यक विधेयक लाकर समस्त विवादों को पूर्ण विराम लगाना होगा।
भवदीय
विनोद कुमार सर्वोदय
ग़ाज़ियाबाद
(Much more important than building the Rama Temple is to make the constitution pro-Vedic, and make Hindustan a Vedic State, not secular (because the Vedic dharma and culture are inherently tolerant of all the tolerant religions and ideologies. – Skanda987)